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अणुव्रत सदाचार और शाकाहार
तैयार रूप में उपलब्ध होने वाली वस्तुओं का हमें धर्म की दृष्टि से, आरोग्य की दृष्टि से त्याग कर देना चाहिए। बाजार की चीजें खाने से लोग बीमार पड़ते हैं । बिसलरी के जल में उसकी बोतल की प्लास्टिक में विष प्रोसेस किया जाता है उसे हम फैशन में इसे पी रहे हैं । सम्यक् एषणा समिति यही कहती है कि खान पान की शुद्धि बहुत जरूरी है।
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आचार्य भगवन् कहते हैं कि किसी वस्तु को ग्रहण करना है रखना है तो उसमें भी विवेक रखो, असावधानी से, बिना देखे यूं ही कहीं पर पटक देने से जीवों के घात होने की संभावना रहती है। इसी प्रकार व्युत्सर्ग समिति में देखभाल कर निर्जन स्थल पर जहाँ जीव न हो वहाँ, थूक - मलमूत्र विसर्जन करने का निर्देश दिया गया है ।
होश में जीने का नाम है समिति अथवा समितिबद्ध आचरण । आँखे खुली होने से ही कोई होश में नहीं होता। कई बार, बेसुधी में आँखे खुली होने पर भी सामने दिखने पर भी कुछ भी दिखाई नहीं देता है। बेहोशी में जीना पाप है, सावधानी अर्थात् प्रयत्नपूर्वक जीना ही पुण्य में जीना है । इसलिए मुनिराज हरपल होश में रहते हैं। हमें समिति के माध्यम से बाहर तो स्वच्छता रखनी ही है इसके साथ साथ अंतरंग की स्वच्छता भी बनाए रखनी है तभी जीवन मंगलमय बनेगा ।
जैन धर्म में उत्तमक्षमा आदि की पालना सिर्फ पर्युषण के लिए ही नहीं है, वह समय तो इन्हें सीखने का है और इसका अभ्यास तो जीवनभर करना है ताकि श्रावकाचार व आत्मशुद्धि बनी रहे। हम नियम कर लेते हैं कि गुस्से का त्याग कर दिया लेकिन कारण मिलते ही गुस्सा आ जाता है। आचार्य भगवन् कहते हैं कि इस नियम का ध्यान आते ही वह टल जाता है जीव कर्मबंध से बच जाता है। जो लोग मन में बहुत ज्यादा जहर रखते हैं वे सांप बनते हैं। तुम जिसे काटोगे वह तो मर जायेंगा लेकिन इसके दुष्परिणामों से तुम भी बच नहीं पाओगे । यदि तुम चाहते हो कि लोग तुमसे डरें तो अगली पर्याय में तुम्हें शेर बनना पड़ सकता हैं। इसलिए हे भव्य आत्माओ! जीवन को सहज बनाओ, नहीं तो संसार बढ़ेगा ।
पंचेन्द्रियों का संयम और मन का संयम तथा 5 निकाय के जीवों की रक्षा जरूरी है। दीपावली पर पटाखों से कितनी हिंसा, पर्यावरण प्रदूषण, पशु-पक्षी तथा मानव सम्पदा का नुकसान होता है लगता है कि हम रुपये में ही आग लगा रहे हैं। यदि हम इस पैसे का सदुपयोग जरूरतमंदो के लिए करें तो हम पाप से बचेंगे ही साथ ही मानवता को धारण कर जीवन को सरल बना पायेंगे। यह समय वीर प्रभु के निर्वाण महोत्सव का है, प्रभु की आराधना का है, अतिरेक के त्याग का है, कषायों के त्याग का है और विषयवासनाओं के त्याग का है। यह विचार करें कि मेरा कुछ भी नहीं है,