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अणुव्रत सदाचार और शाकाहार
अचानक ठिठककर उन युवकों से पूँछती है क्या चाहिए तुम्हें? वे बोले कि सुन्दर कपड़े के नीचे जो माल छिपाकर रखा है वह हमें चाहिए । वह बोली भाइयो ऐसा नहीं है, इसमें तो मैला है। उनमें से कुछ को लगा कि वह सच बोल रही है और वे पीछे रुक गए जबकि बाकी लोग अभी भी पीछे चलते रहे। उस महिला ने उनसे पुनः प्रश्न किया तो वे बोले कपड़ा हटाकर दिखाओ। कपड़ा हटाने पर मल दिखा तो कुछ लोग जिनका विश्वास दृढ़ हुआ वे वापस अपने स्थान पर चले गए लेकिन अब भी कुछ मूढ़ पीछे चल रहे थे। झुंझलाकर पुनः उस महिला ने उनसे पूँछा तुम अब क्यों आ रहे हो? वे बोले कि इस मल में माल छिपा हुआ है। उस महिला ने टोकरी को पटक दिया फिर भी वे असंतुष्ट ही रहे और वस्तु स्थिति को स्वीकार नहीं सके। आज के कामी और शरीर के प्रति रागी मनुष्य की यही मूढ़ दशा है जो अपराध को जन्म देती है ।
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महिला दासता के उद्धारक महावीर प्रभु की आभा का भान तप कल्याणक की महिमा से होता है जब वो बेड़ियों में जकड़ी, दासता से बंधी, तीन दिनों से भूखी प्यासी सती चंदनबाला से आहार लेकर उसका उद्धार करते हैं। हम भी भावना भाएं कि हे करुणा के सागर वीर प्रभु हमारा भी इस भव सागर से उद्धार कर दो।
केवलज्ञान कल्याणक ज्ञान की आभा में मान कषाय को समाप्त कर भावविशुद्धि को बढ़ाने का पर्व है । गौतम गणधर के मान खण्डित होने और उनके द्वारा जैन धर्म को अंगीकार करने के प्रसंग के माध्यम से गुरुदेव ने केवलज्ञान की महिमा की दिव्यध्वनि समवशरण से बिखेरी और देशना की कि इस संसार में 6 द्रव्य, 7 तत्त्व, 9 पदार्थ तथा पंचास्तिकाय ही शाश्वत हैं, यह जीवात्मा ही चिन्मय स्वरूप है। जब तक इस स्वरूप का भेदविज्ञान नहीं होता तब तक जीव संसार में परिभ्रमण करता रहता है। जिसको सम्यक् बोध है, सम्यक् दृष्टि है तथा निर्मल चारित्र है वे इस भव सागर से पार उतरते हैं। जो खुली आँखों से दिखता है वह शाश्वत नहीं अर्थात् अनित्य है और जो मैं स्वयं हूँ वह दिखता नहीं, इस सत्य को भली भांति आत्मसात कर लेना होगा । श्रावक अणुव्रत धारण कर श्रावकाचार का पालन करें मधु मद्य मांस का त्याग करें, बेहोश नहीं रहें तथा होश में रहते हुए भविष्य में महाव्रत धारण करें तभी कल्याण हो सकता है। जिनमूर्ति समवशरण आदि चेतना को जागृत करने में निमित्त है । समवशरण में अभव्य जीव नहीं आ सकता । भगवान महावीर ने धर्म की बहुत ही सुन्दर परिभाषा की है कि उत्तम क्षमा आदि दस धर्म हैं, रत्नत्रय धर्म है, जीव रक्षा धर्म है, हम किसी भी रूप में इसका पालन कर सकते हैं । प्रभु तो उपदेश देते हैं लेकिन संकल्प शक्ति के साथ सुधरना तो खुद को ही पड़ेगा। सभी भेद विज्ञान को प्राप्त हों, निर्मोही तथा बीतरागी बनें ऐसी मंगल कामना ।