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अणुव्रत सदाचार और शाकाहार
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अस्वस्थ रहते हैं। कई बार अतिरिक्त सहानुभूति पाने के लिए भी हम स्वयं को अस्वस्थ बना लेते हैं, पराधीन बन जाते हैं, यह ठीक नहीं, अतिरिक्त अधिकार ठीक नहीं। सकारात्मक सोच से बड़ी से बड़ी कठिनाई आसानी से पार हो जाती है।
अतिरिक्त तनाव व रात्रि को देर तक जागना टेंशन का मुख्य कारण है। अपने मन पर, चित्त पर इतना प्रेशर मत दो कि वह प्रेशर कुकर बनकर फट ही जाय, जो आज कल के माता -पिता प्रायः अपनी संतानों के साथ करते हैं, अपनी अपेक्षाएं उन पर लादते हैं। युवाओं को संबोधते हुए गुरुदेव ने कहा कि घबड़ाने की जरूरत नहीं, अपने में अपनी निहित शक्तियों के प्रति विश्वास पैदा करो, सकारात्मक सोच रखो तथा तदनुरूप पुरुषार्थ भी करो क्योंकि मंजिल उन्हें ही मिलती है जो पांव बढ़ाते हैं। गुरुदेव सन्मतिसागरजी कहते थे कि चलोगे तो शिखर सम्मेद का क्या, गिरनार क्या, कैलाश भी मिलेगा और नहीं चलोगे तो एक गांव में ही सड़ते रहोगे।
एक मेढ़क के कथानक के माध्यम से गुरुवर ने कहा कि एक बार एक तालाब में पानी सूखकर अति अल्प रह गया। मेंढ़को के मरने की नोबत आ गई। पास में भरा हुआ दूसरा तालाब भी था लेकिन कोई भी मेंढक वहाँ जाने की क्षमता के बारे में आश्वस्त नहीं था। वहाँ पास खड़े लोगों ने कहा कि ये मेंढक उस तालाब तक पहुँच ही नहीं सकते। यह सुनकर एक मेंढक के सिवाय बाकी सभी मेंढ़क और अधिक हताश हो गये और अपने रहे-सहे प्रयास भी छोड़ बैठे। लेकिन वह मेंढक प्रयास करता रहा और आखिर में सफल हो गया। तालाब से बाहर आने पर लोगों ने उससे पूँछा कि तुम ऐसा कैसे कर पाये? तो उसने बताया कि मैंने किसी की नहीं सुनी, मेरे कान काम नहीं करते। सच है, जो किसी की नहीं सुनते अपना आत्मविश्वास बनाए रखते हैं उनके लिए हर मंजिल आसान होती है। अपनी देह की सेवा मत करो इससे शरीर रोग का घर बनता है। जीवन में कभी हतोत्साहित मत हो, भरोसा रखो कि गुरु महाराज और भगवान सदैव हमारे साथ है, हम जिस क्षेत्र में हैं उसमें खरे उतरेंगे ही, आज का दिन हमारे लिए शुरुआत करने का सबसे अच्छा दिन है उसके सदुपयोग से ही विकास होगा।
परम उपकारी गुरुदेव ने वर्तमान की ज्वलन्त समस्या "साधन-संसाधनों की कमी का रोना” पर संबोधते हुए कहा कि हमें साधनों की कमी का रोना नहीं रोना चाहिए क्योंकि जिंदगी साधनों के भरोसे ही नहीं चलती। एक निवृत्त प्रोफेसर के घर उनके पूर्व छात्र मिलने के लिए आए, बहुत कुछ होने के बाद भी वे सब अपने पास में कुछ न कुछ साधनों की कमी का रोना रोने लगे। प्रोफेसर उठकर बच्चों के लिए चाय बनाकर लाए और फिर बच्चों को किचन से अपनी पसंद का कप लाने के लिए कहा। जब वे अपनी पसंद के मंहगे कप लेकर आए तो प्रोफेसर बोले चाय पियो। वे बोले, गुरुजी