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अणुव्रत सदाचार और शाकाहार
चाय तो आपके पास है। फिर गुरुजी ने बच्चों को चाय दी और नसीहत भी दी कि बच्चो, जीवन इस चाय की तरह है, जो साधन संसाधनों का मोहताज नहीं, साधनों की कमी या अधिकता से इस जीवन की उपयोगिता पर कोई असर नहीं पड़ता। इसलिए हम अपने जीवन में साधन की कमी का रोना रोने बजाय संयम और साधना को जीवन में स्थान देकर सार्थकता को प्राप्त हों।
संघस्थ आर्यिका सुस्वरमती माताजी ने आत्मविश्वास को लेकर बहुत ही प्रेरणात्मक प्रवचन दिया ताकि बच्चों के माता-पिता समझें और उन पर परीक्षा का टेंशन हावी न होने दें, उनका आत्मविश्वास न टूटने दें अपितु सकारात्मक विचारों के द्वारा उन्हें सदैव प्रोत्साहित करते रहें। माता-पिता की अपेक्षाएं प्रेशर का काम करती है जो बच्चों को जीवन के सच्चे मार्ग से भी भटका देती हैं। हम आचार्यश्री से सीख सकते हैं कि वे किस सहजता से, प्रेम से, दूसरे अच्छे विकल्प बताकर बच्चे को गलत रास्ते पर जाने से बचा लेते हैं। बंधुओ! सकारात्मकता और नकारात्मकता में थोड़ा सा ही अंतर होता है, देखें इस नजीर में- आंधी में पेड़ की डाली को पकड़े दो बच्चों की माँताओं से पहली कहती है कि-"पेड़ को जोर से पकड़ना, नहीं तो गिर जाओगे।” जबकि दूसरी कहती है कि "पेड़ को कसकर पकड़े रहोगे बच्चे, तो गिरोगे नहीं।” यहाँ पहला वाक्य नकारात्मकतापूर्ण व हताशा को बढ़ाने वाला है जबकि दूसरा सकारात्मकता से परिपूर्ण है जो विपत्ति के समय हिम्मत को बनाए रखने में मददरूप है। शब्द वही किन्तु भावना बदलने से परिणाम बदलते देर नहीं लगती। विश्वास रखो कि गुरु की शरण में आने वाला कभी अपना आत्मविश्वास नहीं खोता और हजारों गर्दिशों को पार करने का आशीर्वाद व सामर्थ्य प्राप्त कर लेता है। इसलिए समय रहते सद्गुरु की शरण में समर्पित हो जाओ। ।
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स्वस्थ समाज एवं उन्नत जीवन के लिए भोगोपभोग परिमाण शिक्षाव्रत का पालन हितकारी
चर्याचक्रवर्ती आचार्य श्री सुनील सागरजी महाराज ने श्रावकों की उत्कृ ष्ट चर्या हेतु अणुव्रत, गुणव्रत और शिक्षाव्रतों के प्रवचन की श्रृंखला में आज भोगोपभोग परिमाण शिक्षाव्रत के स्वरूप एवं उपयोगिता को समझाते हुए कहा कि जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए हमें उन वस्तुओं का सर्वथा त्याग कर देना चाहिए जो उपयोग के योग्य नहीं है, अभक्ष्य हैं, हिंसा का कारण हैं। इसके साथ साथ उन वस्तुओं के उपयोग का भी परिमाण संकल्पबद्ध होकर करना चाहिए जो श्रावक के लिए ग्रहण करने योग्य बताई गई हैं। जीवनपर्यंत के लिए जितना परिमाण किया है उसमें से प्रतिदिन का मर्यादित परिमाण करना परिग्रह परिमाण व्रत है।