________________
68
अणुव्रत सदाचार और शाकाहार
हो जिसमें आय ज्यादा रहे और खर्च कम । कर्जे पर जिंदगी न चले। पिच्छी व कमंडल जैन संतों के संयम के उपकरण हैं जो जीवदया के साथ संयममय जीवन जीने का परिग्रह को कम करने का मूक किन्तु प्रभावक उपदेश देते हैं।
33 खुशी के समय होश और मुसीबत के समय जोश न खोएं
आचार्य भगवन् कहते हैं कि हमें सब्जी बेचने वाले जैसे छोटे व्यापरियों से सौदेबाजी नहीं करें उन पर करुणा और दया का भाव रखें। यदि खुशी के समय होश गँवा दिया तो कदम भटक सकते हैं और यदि मुसीबत के समय जोश कम हो गया तो परेशानी और बढ़ सकती है। इसलिए विवेक बनाए रखें।
काँच व पत्थर साथ रहे, कोई बात नहीं घबराने की।
बस इतना याद रहे, कि जिद ना हो टकराने की।। प्राकृत भाषा के विकास हेतु बने संस्थान
गिरनार में भी सभी को अहिंसा व प्रेम के साथ दर्शन हों ऐसी व्यवस्थाएं बने। गुरुदेव ने एक माह गिरनार में रहकर साधना की। जैन समाज कट्टरता से बंधा हुआ नहीं है वह करुणा के अभियान का सहचर है। उन्होंने कहा कि प्राकृत संस्कृत की बहन है, माँ है। कालीदास आदि की कई रचनाएं, नाटक आदि प्राकृत में है। सरकार किसानों को सहयोग करती अच्छी बात है लेकिन वह हिंसक आजीविका हेतु सब्सीडी (अनुदान) देना बंद करे ताकि जीव दया की भावना को समृद्ध किया जा सके। यहाँ किसी की आजीविका छीनने की बात नहीं अपितु आजीविका हेतु पोषणक्षम अहिंसक विकल्प खड़े करने की बात है। आज रूपाणी भाई जैसे लोग शीर्ष पर पहुँचे तो यह मानवता का अभियान और गति पकड़ सकता है। पिच्छी परिवर्तन मुख्यमंत्री के हाथों
पिच्छी अहिंसा का उपकरण है इसके द्वारा मुनिजन शरीर का स्थान व वस्तु आदि का मार्जन करते हैं ताकि सूक्ष्म जीवों का भी घात न हो। परम पूज्य गुरुदेव को श्रद्धा से पिच्छी भेंट करते हुए माननीय मुख्यमंत्री श्री विजय भाई ने खूब धर्म लाभ लिया। पिच्छी की कोमलता व्यवहार को मुलायम बनाने का संदेश देती है भोगों से विरक्ति का संदेश देती है। कमंडल बाहर से भले ही कठोर हो लेकिन उसके अंदर मृदु पानी भरा होता है जिसका वे मितव्ययतापूर्वक उपयोग करते हैं। मुनिवरों के ये उपकरण सद्ग्रहस्थों को भी