________________
56
अणुव्रत सदाचार और शाकाहार
बंधुओ इस कड़वाहट के पीछे उनका अथाह प्यार व चिंता छिपी हुई है जो खतरों से आपका जीवन सुरक्षित करना चाहती है, उसे तराशना चाहती है उसे सदगुणों की खुशबू से सुवासित करना चाहती है। वास्तव में माता-पिता और गुरुजनों की सीख रक्षाकवच है। मर्यादा पुरूषोत्तम राम का जीवन मर्यादा का सबक है इन भटके हुए युवाओं के लिए। विवेक रहित ज्ञान भी किस काम का? जब कीमती वृक्षों आदि की रक्षा के लिए सुरक्षा आवरण रखा जाता है तो जीवन जैसी अमूल्य निधि की सुरक्षा के लिए अनुशासन, संयम और मर्यादा का आवरण नहीं होना चाहिए?
प्रभु महावीर का अहिंसा का मार्ग मर्यादा में रहना सिखाता है। दुनियाँ में किसी को हैरान-परेशान करने से बड़ा कोई पाप नहीं तथा किसी को हंसाने से बड़ा पुण्य नहीं है। गांधीजी के लिए सत्य अहिंसा से पहले था। आचार्यश्री कहते हैं कि यदि जीवन में अहिंसा होगी तो सत्य स्वतः ही प्रकट हो जायेगा। सत्य और अहिंसा दोनों ही जीवन में आवश्यक हैं। वचन से सत्य कहना ही पर्याप्त नहीं अपितु सत्य कहने की रीत को ऐसा बनाना चाहिए कि वह लोगों का हृदय परिवर्तन कर सके। इसी प्रकार हिंसा सिर्फ काय से ही नहीं होती अपितु मन से विचारों से भी होती है। जो अधिक घातक है। इसलिए मन पर नियंत्रण होना जरूरी है। अबुद्धि, प्रमादवश जो वचन बोलने में आते हैं वे प्रायः असत्य ही होते हैं। असत्य के 4 भेद कर सकते हैं- (1) नास्तिरूप असत्य अर्थात् उपस्थित है फिर भी ना कहना, (2) अस्तिरूप असत्य अर्थात् जो नहीं हैं फिर भी हाँ कहना, (3) कुछ अलग ही कथन करना अर्थात् अन्यथा कह देना तथा (4) मर्मभेदी तरीके से या घुमाफिराकर जबाब देना आदि। आजकल तो मोबाइल का दूषण भी इतना बढ़ गया है कि लोग सरे आम झूठ बोलने से भी नहीं सकुचाते, भय नहीं खाते कि कदाचित् आमना-सामना हो जाने पर कैसा लगेगा? वास्तव में असत्य बोलने से चरित्र का नाश होता है। आचार्यश्री की संघस्थ आर्यिका आराध्यमती माताजी ने स्वतंत्रता की आड़ में चल रही स्वच्छंदता की स्थिति पर संयम की लगाम की जरूरत समझाते हुए कहा कि जिस प्रकार बिना चिमनी का दिया हवा के एक झोखे से बुझ जाता है उसी प्रकार मर्यादा वगेर जीवन नष्ट हो जता है। इससे युवाओं को तो दुष्परिणाम भोगने ही पड़ते हैं किन्तु परिवार समाज व राष्ट्र भी दुर्दशा से बच नहीं पाता। हम सभी भलीभांति जानते हैं कि एक पतंग तभी तक सुरक्षित खुले अनन्त आकाश में उड़ान भर सकती है, अठखेलियां कर सकती है जब तक वह अपनी डोर से बंधी हुई रहती है वरना तो कटी पतंग की दशा से हम सभी वाकिफ ही हैं। माता-पिता और गुरुजन उस दिए पर रखी उस चिमनी की तरह हैं जो युवाओं के व्यवहार को संयम, मर्यादा और अनुशासन में बांधे रखते हैं और जीवन के आन्तरिक व बाह्य अस्तित्व की रक्षा करते हैं, रक्षा कवच बनते हैं कड़वे बोल बोलकर भी जीवन में प्रभुत्व प्रकटाने का मार्ग प्रशस्त करते रहते हैं।