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अणुव्रत सदाचार और शाकाहार
30 जैन कोई सम्प्रदाय नहीं, अपितु जन-जन का धर्म है
गुजरात राज्य के शिक्षामंत्री श्री भूपेन्द्र सिंह चुणास्मा आचार्यश्री सुनीलसागरजी महाराज के दर्शन कर अभिभूत हुए। उन्होंने कहा ऐसे संत के दर्शन बहुत नसीब से मिलते है। मैं बहुत पुण्यवान हूं जो मुझे आचार्य प्रवर के दर्शन प्राप्त हुए
गुजरात राज्य के शिक्षामंत्री श्री भूपेन्द्र सिंह चुणास्मा ने आचार्यश्री सुनील सागरजी महाराज के दर्शन किए और अभिभूत होते हुए अहिंसा व प्रेम का संदेश देने वाली जैन संस्कृति को सराहा और कहा कि जैन दर्शन व जैन धर्म हमें अपनी भाषा और भारतीय संस्कृति से जोडता है। उन्होंने धार्मिक संकीर्णता से ऊपर उठकर पूज्य गुरुदेव से बहुत ही मार्मिक प्रश्न किया कि क्या जन जन के उद्धारक प्रभु महावीर स्वामी का समवशरण सिर्फ जैनों के लिए था? तब गुरुदेव ने कहा कि मंत्रीजी ने बहुत ही महत्वपूर्ण व प्रासंगिक प्रश्न उठाया है। वास्तव में जैन कोई सम्प्रदाय नहीं हैं, अपितु यह तो जन जन का धर्म है, यह उनका धर्म है जो अहिंसा का पालन करते हैं, जो अपने आचार-विचार से प्रेम और शांति का संदेश देता है फिर जरूरी नहीं कि वह स्वयं नाम के साथ जैन भी लिखे। वास्तव में कोई जन्म से नहीं अपितु कर्म से जैन बनता है। माँ के पेट से कोई ब्राह्मण या शूद्र पैदा नहीं होता, जैन दर्शन के अनुरूप पुरुषार्थ करके कोई भी जैन कहलाने का सच्चा अधिकारी बन सकता है। यदि जैन कुल में जन्म लेने पर भी विपरीत मिथ्या आचरण करते हैं तो ऐसे लोग स्वयं का तो विनाश करते ही हैं साथ ही अपने बुजुर्गों का सिर भी शर्म से नीचा कर देते हैं। गुरुवर कहते हैं कि जैन होने का मतलब है- अहिंसादि अणुव्रतों का पालन करने वाला, तीन मकार मध मद्य मांस का त्यागी भक्ष्य-अभक्ष्य का विवेक रखने वाला रात्रि भोजन का त्यागी, पानी छानकर पीने वाला।
जैन धर्म अनादिनिधन है। श्री आदिनाथ भगवान आदि देव हैं जिनकी मान्यता इस धरा पर कई अलग अलग स्वरूपों में दिखाई देती है। आदिवासी समुदाय तो आदिनाथ के समय से ही जंगलों में निवास करता है कतिपय उनमें से कुछ लोगों के संस्कार बिगड़ गये हों किन्तु यथासमय यथायोग्य मार्गदर्शन मिलते ही वे भी सत्य और अहिंसक मार्ग पर चल पड़ते हैं। मंत्री महोदय का कहना था कि जिस रास्ते पर आप जैसे संतों के चरण पड़ जाते हैं वहाँ उपद्रव, दंगा-फसाद नहीं होते, दुर्भिक्ष नहीं होता लोग भूखे नहीं रहते।
आचार्यश्री ने मंत्री महोदय को बताया कि प्रायः यह मान्यता है कि संस्कृत सबसे प्राचीन भाषा है किन्तु आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि