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अणुव्रत सदाचार और शाकाहार
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प्राकृत भाषा भारत में बोली जाने वाली सबसे प्राचीन भाषा है। इस प्राकृत भाषा में प्राचीन जैन साहित्य का अकूत भंडार भरा पड़ा है। जैन धर्म का मानव समुदाय पर अपार उपकार है। आदि तीर्थंकर ऋषभ देव ने अपनी बड़ी पुत्री को ब्राह्मी लिपि का ज्ञान दिया था तथा छोटी पुत्री सुन्दरी को अंक विद्या सिखाई तथा पुत्रों के माध्यम से जन जन को जीवकोपार्जन हेतु असि-मसि-कृषि विद्या वाणिज्य तथा शिल्प आदि का शिक्षण प्रदान किया। जैन धर्म का भारतीय संस्कृति के विकास व उत्थान में यह योगदान जानकर शिक्षामंत्री कृत-कृत हो गए।
दशलक्षण पर्युषण महापर्व के अंतिम दिन क्षमावाणी की पावन बेला में मानव जीवन में इसकी उपयोगिता को लेकर गुरुदेव ने कहा कि हम सभी अपने जीवन में क्षमाभाव अपनाएं। इसके लिए परंपरागत रूप से "मिच्छामि दुक्कडं” कहने का चलन जरूर है किन्तु क्षमापना के लिए सही प्राकृत शब्द "मिच्छा मे दुक्कडं" है। त्याग तपस्या करने के बाद भी यदि जीवन में क्षमा, दया, मैत्री भाव प्रकट नहीं हो सके तो सब व्यर्थ है।
। प्राकृत भाषा में कहा गया है- "खम्मामि सव्व जीवाणां, सव्वे जीवा खमन्तु मे। मित्ती मे सव्व भूदेसु वेरं मज्जं ण केणवि' इस गाधा में 4 कषायों का शमन होता है, जब मान कषाय का शमन होता है तभी हम क्षमा कर पायेंगे, ईर्ष्या और अहंकार खत्म होगा तो हम हाथ जोड़ पायेंगे। कपटी का कोई दोस्त नहीं होता, समाज में भी वैर भाव मूल कारण है- सम्पत्ति में मेरा तेरा के ममत्व का होना। इससे परिवार टूटते हैं। हे सज्जनो! लोभ जाता है तभी पवित्रता आती है और इस पवित्र दिन हम संकल्प लें कि हम सभी महावीर, बुद्ध, राम और कृष्ण के आदर्शों को जीवन में अपनायेंगे। हे भव्य जीवों! अरिहंत बनो, अरिहंत नहीं बन सकते तो संत बनो, यदि संत भी नहीं बन सकते तो संतोषी सद् गृहस्थ अवश्य बनो।
31 जैन धर्म कठोर साधना का पर्याय गुरुचरणों में मनाया गया विश्व मैत्री पर्व : विविध धर्माचार्य सन्मति समवशरण में एक मंच पर
क्षमावाणी पर्व के पावन प्रसंग- विश्व मैत्री दिवस पर सन्मति समवशरण में विविध धर्मों के धर्माचार्यों की उपस्थिति एवं उनके उद्गारों से गुजरात की राजधानी गांधीनगर सन्मति समवशरण, सेक्टर-21 में अद्भुत ऐतिहासिक दृश्य व मैत्रीयता का सुरम्य वातावरण उत्पन्न हुआ।