Book Title: Anuvrat Sadachar Aur Shakahar
Author(s): Lokesh Jain
Publisher: Prachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan

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Page 33
________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार 23 समझाया कि महाराज मेरे पुत्र ने सही कहा था, पुराण में भी सही लिखा था कि इतना सा मांस खाने पर सातवां नरक मिलता है किन्तु आप तो महाराज थाली भरकर खाते हैं इसलिए यह विधान आप पर कहाँ लागू पड़ता है? सचमुच कैसी दीन दशा है ऐसे स्वार्थी लोगों की? जो "हम तो डूबेंगे और तुम्हें भी ले डूबेगें' की युक्ति को चरितार्थ करते हुए पतन के गहरे गर्त में निश्चित तौर पर गिरते ही हैं। आचार्यश्री ने मात्र समस्या पर ही नहीं अपितु इनका समाधान किस तरह से मिल सकता है उस पर प्रकाश डालते हुए कुछ सत्य घटनाओं को समाज के सामने रखा। मध्य प्रदेश के खरगौन में एक बार समुदाय के समुदाय विशेष के सदस्यों को ठीक तरह से समझा कर तथा पुलिस प्रशासन के हस्तक्षेप से मूक पशुओ की बलि को रोका गया। मध्यप्रदेश के एक भईया मिश्रीलाल गंगवाल मुख्यमंत्री ने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरागांधी की विदेशी मेहमानों को मांसाहार आदि से खुश करने की इच्छा को नजरअंदाज कर उन्हें शाकाहार कराकर संतुष्ट किया वह भी किसी नुकसान की परवाह किए बिना। जबकि आज विविध प्रकार की बहानेबाजी के तहत पशुओं को कत्ल करने से लंपट लोग बाज नहीं आते। इंदौर की एक और घटना का जिक्र करते हुए कि अच्छी तरह से समझाने बुझाने पर सकारात्मक परिणाम मिल ही जाते हैं, कहा कि एक बार विशिष्ट अतिथि सैयादाना जी के स्वागत भोज में मांसाहार का आयोजन होना था। गुरुदेव की प्रेरणा से समाज के लोग उन अतिथि महोदय से मिले और उन्हें जीवदया के बारे में समझाया। वे मान गये उन्होंने अपने आयोजकों को भी समझा दिया और इस तरह से कई सारे पशु जान गंवाने से बच गए। वास्तव में ये प्रयास हम सभी की थोड़ी सी जागृति और करुणा के माध्यम से हो सके हैं। आचार्यश्री ने कहा कि आज लोग व्यापार, आजीविका आदि प्रवृत्तियों में अनीति व हिंसा का विचार नहीं करते। उनकी यह कमाई अस्पताल आदि में ही नष्ट हो जायेगी उनका इह और परलोक दोनों बिगड़ जायेंगे। अशुद्ध वस्तुओ का सेवन मन में विकार उत्पन्न करता है। हम किसी भी रूप में पशुबलि का समर्थन न करें तथा पर्युषण दरम्यान विशुद्ध अहिंसा धर्म का पालन करें ऐसी मंगल कामना के साथ शुभ आशीर्वाद प्रदान किया। प्रवचन के आरंभ में संघस्थ मुनिश्री सर्वार्थसागरजी महाराज ने कहा कि जैन कुल में जन्म लेने मात्र से कुछ नहीं हो जाता हम जैन कहलाने के अधिकारी नहीं बन जाते जब तक कि हम उसके अनुरूप आचरण को जीवन में न उतारें और अणुव्रतों का श्रद्धा से पालन न करें।

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