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अणुव्रत सदाचार और शाकाहार
यक्ष श्रीकृष्ण जी के क्रोध की परीक्षा करने आता है, उस्केरता है किन्तु शांत स्वभावी कृष्ण के सामने हार मानकर घुटने टेक देता है।
क्षमा मानव का भूषण है, अरु मानवों का अंगार। क्षमायुक्त मानव इस जग में, सुख पाता है दिव्य अपार।।
16 अहंकार छोड़ जीवन में मृदुता धारण करोः
उत्तम मार्दव धर्म घमंड न करना जिंदगी में, तकदीर बदलती रहती है
शीशा वही रहता है, तस्वीर बदलती रहती है।
एक धर्म के दस लक्षण, धर्म को अपनाने के दस रास्ते, दस तरह से समझो तो सही। किसी भी रस्ते को अपना लो, सभी को पहुंचना तो एक ही जगह है। क्रोध जाता है तो क्षमा आती है, मान जाता है तो मृदुता आती है। मृदुता बहुत बड़ी शक्ति है। कमठ के उपसर्ग पर भी मृदु विनयी रहने वाले प्रभु पार्शवनाथ की स्तुति करते हुए कल्याणमंदिर स्तोत्र में आचार्य श्री कुमुदचन्द्रजी कहते हैं कि भगवन् आप पर जो चवंर ढोरे जाते हैं वे यह संदेश देते हैं कि जो जितना झुकता है वह उतना ऊपर उठता है। विनम्र कौन होता है? जो निज स्वभाव में जाता है वही मृदु बन पाता है। अहंकार आपका स्वभाव नहीं है। अहम् आपके साथ नहीं जायेगा और यदि जायेगा भी तो नीचे की ओर ही ले जायेगा जबकि मृदुता, विनय आपको ऊपर की ओर ले जायेगी।
कार का अहम् और अहम् की कार। यह कार बहुदा लोगों में पायी जाती है भले ही नवकार की कार उनके पास न हो। कार का अहम् भी बहुतों को होता है। अहम् की यह बिना पहियों वाली कार दौड़ती तो बहुत तेज है किन्तु अधोपतन नरक के दरवाजे पर ले जाती है। अहंकार की यह कार नवकार की कार से तेज नहीं जा सकती। नमोकार की कार सिद्धालय में बिठा देती है। अहम् मतलब है मैं—पना। पुद्गल वर्गणाओं को ही अपना मान लेना मैं–पना है। हे ज्ञानी! आत्मा तो ज्ञायक स्वरूप है। जैसे गायक बनने में व्यक्ति को पुद्गल का सहयोग लेना पड़ता है और उसका गायकपना पुद्गल की स्थिति पर निर्भर हो जाता है जबकि ज्ञायक बनने में किसी का भी सहयोग नहीं लेना पड़ता।
___ मैं धनवान हूँ यह कैसा अहम्? | तुम धनवान नहीं हो सकते हो, ज्ञान वान हो सकते हो। अरे ज्ञानी! आप धनवान नहीं हैं, धनवान होना आरोपण है, अहंकार भी आरोपण है, स्वभाव नहीं। ज्ञानी को अहंकार नहीं होता। अहंकार,