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अणुव्रत सदाचार और शाकाहार
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क्रोध ही सर्वनाश की जड़ : उत्तम क्षमा धर्म
उत्तम क्षमा धर्म कहता है कि क्रोध को छोड़ने से कई प्रकार के आन्तरिक एवं बाह्य नुकसान से बचा जा सकता है। परमकृपालु वीतरागी भगवान तथा उनकी वाणी- जिनवाणी कहती है कि गुस्से को दूध और पानी की तरह सहजता से पीना सीख जाओगे जो सही मायनों में उत्तम क्षमा धर्म का पालन कर सकोगे। क्रोध ही सर्वनाश की जड़ है। क्रोध के आवेश में जीव चेतनशून्य, संवेदनहीन और अविवेकी हो जाता है तथा अपने भले बुरे का भी विचार नहीं कर पाता। चर्याचक्रवर्ती प्राकृताचार्य 108 आचार्यश्री सुनीलसागरजी महाराज ने आज पर्युषण पर्व के प्रथम दिन जीवन में उत्तम क्षमा धर्म का महत्व समझाते हुए कहा कि दशलक्षण धर्म की आराधना कोई भी कर सकता है इसके लिए जैन होना आवश्यक नहीं।
उत्तमक्षमा धर्म क्रोध छोड़ने की बात करता है, उत्तम मार्दव अहंकार को खत्म करने की एवं उत्तम आर्जव धर्म सरल स्वभावी बनने की प्रेरणा देता है तथा उत्तम शौच धर्म परिग्रह को घटाते हुए संतोषी जीवन व्यतीत करने की वकालत करता है। ये चार गुण जिस व्यक्ति में प्रकट हो जाते है वह कभी असत्य नहीं बोलता और संयम को धारण करता है, तप और त्याग का पुरुषार्थ करता है तथा परिग्रह में से अपना ममत्व कम करते हुए आकिंचन धर्म को धारण कर अपना उद्धार कर लेता है। गुरुदेव कहते हैं कि लौकिक जगत में प्रत्येक विषय के अध्ययन एवं परीक्षा की एक नियत समय सारणी रहती है किन्तु दशलक्षण धर्मों का अभ्यास तो जीव को आत्मकल्याण के लिए सावधान रहने के लिए ता-उम्र करना पड़ता है।
यदि हम क्रोध करते हैं तो हम अपने से छोटे हों या बड़े, किसी से भी प्रेम, सम्मान व आत्मीयता प्राप्त नहीं कर सकते। क्रोध के कारण हाथ में आया हुआ अवसर भी खोना पड़ जाता है। हो सकता है कि लोग आपके क्रोध के कारण आपसे डरें भी किन्तु यह भय किस काम का कि आत्मीयता ही इन संबंधो से किनारा कर ले। क्रोध करने वाला पहले अपने तन-मन का नुकसान कर लेता है फिर भले ही सामने वाले का नुकसान हो या न हो। क्रोध से शरीर और आत्मा दोनों का नाश होता है। जब यह जीव भेदविज्ञान करना सीख जाता है तब वह क्रोध नहीं करता है, सभी से क्षमा मांगने का साहस पैदा कर लेता है और उदार मन से सभी को क्षमा कर सकता है। हम सीख ले सकते हैं अपनी संस्कृति के प्रेरक प्रसंगों से। भगवान पार्शवनाथ पर क्रोधी कमठ का उपसर्ग हार मान गया। एक प्रेरक प्रसंग है जिसमे एक