________________
अणुव्रत सदाचार और शाकाहार
29
करके उसे अपमानित करने से बचना चाहिए और उसे गलतियां सुधारने का अवसर प्रदान करना चाहिए। ऐसे जीव काम, क्रोध व मद के वशीभूत होकर विचलित हो जाते हैं उन्हें स्थिति प्रज्ञ भाव से सही रास्ते पर लाने के लिए धर्मज्ञजनों को भोजन, धन आदि से विवेकपूर्वक मदद के लिए आगे आना चाहिए ताकि भटके हुए लोगों को सही मार्ग पर लाया जा सके।
निश्चयनय के स्थितिप्रज्ञ के साथ साथ व्यवहारनय के स्थितिप्रज्ञ को समझना तथा उसे जन जन तक पहुँचाना इस प्रक्रिया में मदद रूप होना बहुत जरूरी है। मनमेल बना रहे इसके लिए जरूरी है कि हम किसी को तुच्छ न समझे, बड़ों के प्रति सम्मान और छोटों के प्रति प्यार को बनाए रखें, इनके साथ वह व्यवहार कदापि नहीं करें जो अपने लिए पसंद न करते हों।
आचार्यश्री के प्रवचन से पूर्व गुरुकृपा के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए संघस्थ मुनिश्री श्रुतांश सागरजी महाराज ने रामायण के राम-केवट संवाद के प्रतीकात्मक माध्यम के द्वारा विनयपूर्वक कहा है कि केवट ने नदी पार कराई थी किन्तु आचार्यप्रवर ने तो संसाररूपी सागर को पार कराने के पथ में लगाकर हमारे जीवन पर अत्यन्त उपकार किया है। आज की प्रवचन सभा में कडी विधानसभा क्षेत्र के विधायक श्री के.पी. सोलंकी भी रोज की तरह उपस्थित रहे, उन्होंने आचार्यश्री के आशीर्वाद व प्रवचन लाभ से स्वयं को कृतार्थ किया। दिगंबर जैन समाज, गांधीनगर के पदाधिकारियों द्वारा उनका सम्मान किया गया।
14
अहिंसा श्रेष्ठ धर्म इसका पालन ही सच्ची मानवता - इस जगत के समस्त प्राणियों में एक समान जीवात्मा है, सभी समान रूप से सुख-दुख का अनुभव करते हैं और सभी जीव ही जीने की कामना रखते हैं फिर भी हिंसा के आतंक में निर्बल, असहाय और अबोले जीव इसके शिकार होते हैं। संसार का कोई भी धर्म किसी भी रूप में हिंसा का समर्थन नहीं करता। चर्याचक्रवर्ती परम पूज्य 108 आचार्य श्री सुनील सागर जी महाराज ने अहिंसा की वर्तमान प्रासंगिकता पर, मानव समुदाय के लिए इसकी अनिवार्यता पर अपने उद्बोधन में आगे कहा कि इस संसार के समस्त जीव चैतन्य दृष्टि से एक समान हैं। जब सभी को समान रूप से अपने प्राण प्यारे हैं तो किसी रीति-रिवाज, परंपरा अथवा अज्ञान की आड़ में किसी के प्राणों के हनन का अधिकार किसी को कैसे मिलना चाहिए? अबोल व मूक पशुओं की बलि क्रूरतम व अमानवीय कृत्य है फिर भले ही वह किसी भी परिस्थिति में क्यों न हो?