Book Title: Anuvrat Sadachar Aur Shakahar
Author(s): Lokesh Jain
Publisher: Prachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 37
________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार 27 होते हैं उन्हें समाज दुत्कार देता है। हमें अपने जीवन को सुई जैसा बनाना है। सुई और कैंची दोनों का उपयोग करने वाले दर्जी के व्यवहार से सीख लेकर हमें अपने जीवन को सही दिशा देनी है। __हम सभी ने प्रायः देखा होगा कि दर्जी सुई को काम करने के पश्चात् अपनी टोपी अथवा पगड़ी में टांक लेता है जबकि कैंची को पैर के नीचे दबाकर रख लेता है। यदि सुई को पगड़ी के स्थान पर पैर के नीचे रख लिया जाय तो उसे जोड़ने का अवसर नहीं मिलेगा और यदि इसी तरह कैंची को पैरों के स्थान पर पगड़ी पर बिठा लिया तो उससे सिर फूटने या पैर आदि अंग-भंग होने की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता था। मानव के शरीर में जीभ मांस व चाम की बनी होती है उसमें हड़ी भी नहीं होती तथापि वह जोड़ने व तोड़ने दोनों ही काम बखूबी करने का सामर्थ्य रखती है। अच्छा बोलकर, क्षमा मांगकर बिगड़े रिश्तों को सुधारा जा सकता है तो खराब व कड़वा बोलकर बने हुए रिश्तों को बिगाड़ा भी जा सकता है। जो काम शब्द से हो सकता है उसके लिए हाथ उठाने की आवश्यकता कदापि नहीं है। हाथ वही उठाते हैं जिनके शब्दों में दम नहीं होता। अच्छा बोलकर आप न करने वाले से भी कोई भी काम करा सकते हैं। हमें समझना होगा कि कोई भी अपना अपमान सहन नहीं करना चाहता। हम अधीनस्थ के साथियों के सम्मान को चोट न पहुँचा कर ही मनचाहा काम करा सकते हैं। अहंकार किसी का नहीं चलता। प्रेम से और मानवता से इस दुनियाँ को जीता जा सकता है। प्रवचन के आरंभ में संघस्थ पूज्य मुनिश्री सुश्रुत सागरजी ने बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि जीवन जीने के श्रेष्ठ संस्कार गुरु के पास जाने से ही मिलते हैं। जिस प्रकार पाठशाला जाने से लौकिक शिक्षा प्राप्त होती है, उसी प्रकार जीवन जीने का सार सच्चे गुरु से ही मिल सकता है। बच्चों व श्रावकों को संस्कारित करने के लिए संघस्थ दीदीयों द्वारा सांयकाल स्वाध्याय व प्रश्नमंच के माध्यम से श्रावकोन्मुखी चर्या से परिचित कराने का अति उपयोगी दैनिक कार्यक्रम चलाया जा रहा है जिससे जैन-जैनोत्तर समुदाय लाभान्वित हो रहा है। 13 मिलना किस काम का जब मन न मिले "मिलना किस काम का, जब मन ना मिले और जीना किस काम का, जब जीवन में धर्म ना मिले" की नीतिमत्ता पूर्ण युक्ति से अपनी बात शुरू करते हुए चर्याचक्रवर्ती परम पूज्य 108 आचार्य श्री सुनीलसागरजी महाराज ने चातुर्मास के आज रविवासरीय प्रवचन में कहा कि यदि लौकिक जीवन में

Loading...

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134