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अणुव्रत सदाचार और शाकाहार
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जाता है। मंत्रीजी ने जैन साधुओं की कठोर साधना- एक बार भोजन, पैदल विहार, अपरिग्रह, विविध प्रकार के परीषहों को सहना, तथा लोकहित में निर्भीकता से अहिंसा की क्रांति का बिगुल बजाने जैसे कार्यों के प्रति नतमस्तक होते हुए कहा कि आप सभी आदरणीय एवं भगवान महावीर व बुद्ध की अहिंसा के सच्चे वाहक हो जो समाज के उत्थान के लिए अंधरे में रोशनी की किरण ढूंढ रहे हो उन्हें सद्मार्ग पर ले जा रहे हो। इससे भटके हुए लोग सही मायनों में इंसान बन सकते हैं।
आचार्यश्री सुनीलसागरजी तो विविध धर्मों के आचार्यों के साथ अहिंसा के प्रसार के लिए खुले मन से चर्चा करते हैं और सामूहिक समझ विकसित करके व्यावहारिक समाधान का सतत प्रयास करते रहते हैं। आज उन्हीं की परंपरा के आदिगुरु मुनिकुंजर आचार्यश्री आदिसागरजी महाराज का 153वां जन्म दिवस है जिनके आदर्श आचरणों व शिक्षाओं को जानकर, समझकर मन गद्गद हो उठता है कि वे कितने परम उपकारी संत रहे कि उन्होंने गृहस्थ और साधु दोनों ही जीवन में आदर्शों के कीर्तिमान स्थापित किए। आचार्य गुरुवर सुनीलसागर जी ने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि
"गुरु का आशीष शिष्य को ऊँचा उठा देता है। लोगों की पलकों पर तो ठीक, सिद्धालय में बिठा देता है।"
जैसे श्री राम को गुरु वशिष्ठ, श्रीकृष्ण को गुरु संदीपनी मिले उसी प्रकार हमें आत्मकल्याणी आदिसागरजी गुरुदेव प्राप्त हुए जिनकी परंपरा में आचार्य महावीर कीर्ति, तपस्वी सम्राट सन्मति सागरजी हुए जिन्होंने सात्विक संस्कृति की रक्षा की। यदि सभी श्रावक अणुव्रतों को जीवन में स्थान दे दें तो शासन को पुलिस व न्याय व्यवस्था की आवश्यकता ही नहीं रह जायेगी। प्रभु महावीर ने सत्य की शोध में और उसे लोगों तक पहुँचाने के लिए राजसी ठाठवाट छोड़ संयममय साधना का कठिनपथ अंगीकार करके अपनी आत्मा को तपाकर कुंदन व विशुद्ध बनाया।
परम कृपालु आचार्य मुनिकुंजर आदि सागरजी का गृहस्थ जीवन भी अतीव करुणा, दया, साहस व वैराग्य से भरा हुआ था। सांगली के एक छोटे से गांव अंकली में जन्मे समृद्ध किसान जो पशुपक्षियों की दया के चलते कभी नफा नुकसान के गणित में नहीं पड़े, कभी पक्षियों को फसल चुंगने से नहीं रोका, दुर्भिक्ष के समय अपने अन्न के भंडारों को लोगों के लिए उदारता के साथ खोल दिया, फिर भी पूर्ति न होने पर अन्य श्रीमंतो से सहयोग की अपील की, समाधान न मिलने पर जरूरतमंदों के साथ खड़े रहकर उन्हें उदर पूर्ति के लिए जरूरत का अन्न उठा लाने तक को कह दिया और इसके चलते उन पर कोर्ट केस भी चला। संकटों से घबडाए नहीं अपितु वैराग्य की ओर कदम बढाते गए। कम उम्र में पिता की मृत्यु, कुछ ही समय बाद माता का साया उठ जाना, छोटे बच्चे और पत्नी की असमय में मृत्यु। कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि