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अणुव्रत सदाचार और शाकाहार
बनो। मान की बहुलता से मन टूट जाता है, अपे भीतर बैठा हुआ आत्मन भी टूट जाता है। कहा भी है- मान महा विष रूप करहिं नीच गति जगत में। बहुत अहंकार करने वाले को कोई पसंद नहीं करता, गुरु भी अहंकारी शिष्य को पसंद नहीं करता। अहंकार से भरे एक शिष्य ने अपने गुरु से कहा कि बताओ गुरूजी मैं आपको गुरुदक्षिणा में क्या दूँ? गुरु ने कहा कि सारे के सारे अच्छे गुण, वस्तुएं तो मेरे पास हैं। इसलिए तुम मुझे गुरुदक्षिणा में ऐसी वस्तु दो जो सबसे निकृष्ट हो और जिसका कोई उपयोग न हो। शिष्य कभी कचरा तो गोबर गुरु के पास लाया। गुरु ने कहा कि इनसे तो बायोगैस बन सकता है यह कहाँ बेकार है? अरे तुम्हारे अंदर जो देने का अहंकार है उसे छोड़ दो उसे मुझे दे दो तो तुम सुखी हो जाओगे।
17 सरल स्वभावी और निष्कपटी होना : उत्तम आर्जव धर्म
धर्म तो एक एक है किन्तु वह उत्तम क्षमा, मार्जव, आर्जव आदि दश लक्षण सहित है। पर्युषण पर्व ही आत्मा के आनंद का, त्याग और संयम का एक ऐसा पर्व है जो हर दिन एक नया लक्षण सिखाता है जो मनुष्य के व्यावहारिक जीवन को शांतिपूर्ण व सुखमय बनाता ही है और इससे कषाय मंद पड़ने के कारण उसका परभव भी सुधर जाता है। 108 आचार्यश्री सुनीलसागरजी महाराज ने बड़े ही सहज ढंग से सुन्दर पंक्तियों के माध्यम से कहा कि उत्तम क्षमा धर्म कहता है कि क्रोध को भगाओ, मादर्व कहता मुलायम बनो, आर्जव कहता सरल बनो रे, शौच बताता लोभ धुनो रे, सत्य धर्म कहता हर क्षण इसे धारण करो, संयम धर आनंद बढ़ाओ, तप करके कुंदन बन जाओ, त्यागी बन उपकार करो, आकिंचन्यमय रूप धरो और ब्रह्मचर्यमय आचरण करो।
आज की प्रवचनसभा में पूर्व मेयर श्री गौतमभाई शाह के साथ सांसद एवं सर्जन डॉ. किरीटभाई सोलंकी आचार्यश्री के आशीर्वाद हेतु पधारे और कहा कि गुरुवर का प्रवचन बहुत ही सारयुक्त है उनकी निश्रा में पहुंचे संथारा ले रहे 38वें उपवास पर चल रहे क्षुल्लक सर्वार्थ सागरजी की बीमारी व वर्तमान परिस्थिति का अवलोकन करने के पश्चात् सार्वजनिक रूप से कहा कि चिकित्साशास्त्र में यह किसी चमत्कार से कम नहीं है।
आर्जव धर्म पर अपनी परमकल्याणी वाणी से गुरुदेव ने कहा कि स्वभाव में सरलता रखो, निष्कपट बनो। कपटी और मायाचारी व्यक्ति का तो उसके माता-पिता और गुरुजन भी विश्वास नहीं करते। कपट छिपाने से छिपता नहीं है। अनुभवी, हित रखने वाले गुरुजन ऐसे भटके हुए लोगों को सुधारने की कोशिश करते हैं किन्तु स्वयं को न बदल पाने की जड़