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अणुव्रत सदाचार और शाकाहार
आचार्य श्री कहते हैं कि जीवदया और शाकाहार के बीच सीधा संबंध है। जो लोग तर्क करते हुए मांसाहार को सस्ता बताते हैं उनको इस दृष्टांत के द्वारा सार रूप में समझाते हुए परम उपकारी आचार्य गुरुदेव कहते हैं कि
__एक बार राजा श्रेणिक के दरबार में इस विषय पर चर्चा चली। अभय कुमार ने पक्ष रखा कि मांसाहार न सिर्फ खराब है अपितु मंहगा भी है। कुछ जड़ बुद्धि मंत्री इस कथन से सहमत नहीं हुए और कहा कि सिद्ध करके दिखाओ। उसी रात नियत योजना के तहत अभय कुमार उन मंत्रियों के घर बारी बारी से पहुंचे और कहा कि राजा की तबियत अचानक बिगड़ गई है उनके त्वरित स्वास्थ्य लाभ के लिए अच्छे व्यक्ति के हृदय के 5 ग्राम मांस की आवश्यकता वैद्य ने बताई है अतः आप अभी मांस दे दे और इसके लिए 1000 सोने की मोहरें दी जायेंगी। सभी का एक ही जबाब था कि हम इस तरह से असमय में अपनी मृत्यु को प्राप्त होना नहीं चाहते। आप कितनी ही कीमत क्यों न दें हम अपना मांस नहीं दे सकते। अगले दिन दरबार से सभी के सामने हकीकत बयां हई। शाकाहार ही सस्ता व उत्तम आहार है, की दलील के सामने सभी नतमस्तक हो गये। उन्होंने कहा जिस तरह आपको अपने प्राण प्यारे हैं उसी तरह पशु-पक्षियों को भी अपने प्राण प्यारे होते हैं। इसलिए जीवदया रखकर सात्विक आचरण करना ही मानव धर्म है। आज हम हिंसादि का विचार किए बिना होटलों में कितनी ही अनदेखी वस्तुएं खा जाते हैं कदाचित् होटल में मांसाहार करने वालों को पशुओं की चीत्कार का अंदाजा नहीं आता होगा लेकिन जहाँ शाकाहार और मांसाहार दोनों प्रकार का भोजन मिलता हो, उसका भी हमें दृढ़ता के साथ हर परिस्थिति में सर्वथा त्याग कर देना चाहिए।
समाज में चाटुकारों के प्रभाव में भी इस तरह की विकृतियां पनपती है जिसे भारतीय लोक संस्कृति के इस कथानक से आचार्य भगवन् ने समझाने का प्रयास किया कि
एक राजा के यहाँ चाटुकार पंडित था वह राजा को धर्मोपदेश के नाम पर वही कहता था जो राजा को प्रिय लगता था, कभी वह उसे सही रास्ता नहीं दिखाता था। एक बार अपनी अनुपस्थिति में उसने अपने पुत्र को धर्मोपदेश देने के लिए राजा के पास भेजा और कहा कि कोई गड़बड़ मत करना सावधानी रखना। किन्तु वह बालक बुद्धि उसका गूढार्थ नहीं समझ सका और राजा से पुराण में लिखे अनुसार कह बैठा कि राजन् “जो इतना सा मांस खाता है वह सातवें नरक में जाता है।" जिरह करने पर उसने राजा को साक्ष्य भी दिखा दिया किन्तु उस मांसाहारी राजा को वह सत्य भी नहीं रुचा और उसने उसे कारागार में डलवा दिया। पंडित को मालूम पड़ा तो राजा के पास दौड़ता हुआ आया और उसे इस तरह से भ्रमित किया और