Book Title: Anuvrat Sadachar Aur Shakahar
Author(s): Lokesh Jain
Publisher: Prachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan

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Page 20
________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार प्रक्रिया में संख्यात जीवों की हिंसा होती है। इससे अभिमान, काम, क्रोध आदि विकृतियां पनपती हैं। मोह और मद का प्रभाव तो इससे भी अधिक खतरनाक है । 10 आर्यिका आर्षमति माताजी ने कहा कि यदि हम गुरु चरणों में स्वयं को समर्पित कर दें तो सही रास्ता पकड़ सकते हैं, नर से नारायण, अरिहंत - सिद्ध बन सकते हैं। पौराणिक कथानक के माध्यम से बताया कि कामवासना के वशीभूत राजा जैसे श्रेष्ठ नर अपनी पुत्री पर मोहित होकर जिस पाप और लोकनिंदा का कार्य कर बैठते हैं, वह शराब के नशे से भी बुरा पाप व पतन का भागी है। पिता के द्वारा पीटा गया पुत्र, गुरु के द्वारा डांटा गया शिष्य और सुनार के द्वारा पीटा गया स्वर्ण आभूषण का ही रूप लेते हैं। बात सच्चे समर्पण की है जैसे बीज समर्पित होकर उपयोगी वृक्ष बन जाता है, माटी समर्पित होकर घड़ा बन जाती है। धर्मसभा में आना, बैठना, श्रवण करना व ग्रहण करना कभी निरर्थक नहीं जाता। 6 भारतीय संस्कृति में आदर्श शिक्षक सदैव सम्माननीय शिक्षक दिवस : आचार्य श्री द्वारा राष्ट्र के समाज निर्माता शिक्षकों के लिए संदेश एक राष्ट्रपति ऐसे भी हुए जो शिक्षक से राष्ट्रपति बने। उनके आदर्शों की तासीर ऐसी थी कि उनका जन्म दिन शिक्षक दिवस के रूप में सम्पूर्ण राष्ट्र मनाता है और सभी सम्मानीय शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता है। इस चातुर्मास में गुजरात की राजधानी गांधीनगर में आध्यात्म की अविरल गंगा बहा रहे चतुर्थपट्टाचार्य परमप्रभावक दिगम्बर संत चर्याचक्रवर्ती आचार्य श्री सुनील सागरजी महाराज ने आज प्रातः कालीन प्रवचन सभा में शिक्षक दिवस की महत्तता पर अपना व्याख्यान शुरु करते हुए कहा कि "मुझको जमीं आसमां मिल गए, गुरु क्या मिले, भगवान मिल गए । " केवल भौतिक शिक्षा या लौकिक शिक्षा देने वाला ही गुरु नहीं कहलाता अपितु तपस्वी सम्राट सन्मति सागर जैसे विराट व्यक्तित्व के धारक आदर्श वात्सल्यमयी गुरु यदि मिल जाते हैं तो लाखों-करोड़ों जीवन संवर जाते हैं। दिगम्बर जैन साधु सिर्फ जैन समुदाय के लिए ही उपदेश रूपी अमृत वर्षा नहीं करते अपितु आदिवासी, ग्रामीण, शहरी विस्तार, स्कूल के विद्यार्थी, जेल के कैदी व जैनोत्तर समुदाय आदि सभी के लिए समान रूप से उनके कल्याण हेतु

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