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अणुव्रत सदाचार और शाकाहार
राग-द्वेष, कषाय आदि केंसर से पीड़ित व्यक्ति का गारंटी के साथ उपचार होता है। इसके कुशल डॉक्टर आचार्य भगवन् श्री सुनीलसागरजी महाराज हैं, उनके आशीष रूपी वट वृक्ष की छत्र-छाया में जो आनंद व शुकून प्राप्त होता है वह कहीं और नहीं मिलता। जब वात्सल्य से जरा मुस्करा देते हैं तो सभी दुख, संताप पलायन कर जाते हैं। इन गुरु दरबार में अपूर्व सुख शांति मिलती है।
उत्कृष्ट साधना, तपश्चर्या व सहजता की मूर्ति
। आचार्यश्री शांतिसागर
चारित्र चक्रवर्ती आचार्यश्री शांति सागरजी महाराज की 63वीं पुण्यतिथि पर विशेष व्याख्यान।
__ इस संसार में कुछ लोग जन्म लेते हैं पेट भरने के लिए, कुछ लोग जन्म लेते हैं पेटी भरने के लिए, कुछ लोग जन्म लेते हैं कुछ करने के लिए तथा प्रभु महावीर स्वामी और शांति सागरजी जैसी विभूतियां जन्म लेती हैं भव सागर से तरने के लिए।
दिगंबर जैनाचार्य चारित्र चक्रवर्ती श्री शांतिसागरजी महाराज की 63वीं पुण्यतिथि पर अपने उद्गार व्यक्त करते हुए आज प्रातःकालीन प्रवचन सभा में चर्याचक्रवर्ती गुरुदेव 108 आचार्यश्री सुनीलसागरजी महाराज ने सर्व प्रथम गुजरात राज्य के कडी क्षेत्र के विधायक श्री के.पी. सोलंकी जी के भावसहित पाद प्रक्षालन करने पर उन्हें आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि वे लोग अत्यन्त सौभाग्यशाली हैं जो रोजमर्रा की भागमभाग की जिंदगी एवं व्यस्त कार्यक्रमों में से समय निकालकर धर्मसभा में बैठने हेतु समय देकर समय का सदुपयोग करते हैं और माँ जिनवाणी का भाव सहित श्रवण कर अपने आचार-विचारों को श्रेष्ठ बनाने का पुरुषार्थ करते हैं।
गुरुदेव ने आज आचार्यश्री शांति सागरजी महाराज की पुण्य तिथि पर उनके जीवन के कुछ संस्मरणों को सामने रखते हुए कहा कि सही मायनों में पुण्यतिथि उनकी होती है जिनका जीवन भी मंगलय रहा हो और मरण भी मंगलमय। मरते तो सभी हैं किन्तु पुण्य के साथ वही मरता है जो अंत समय तक संयमी रहा हो। एक संयमी का मरण पुण्यतिथि बनकर सबको प्रेरणा देता है।
जैनागम के महान आचार्य श्री कुन्दकुन्द स्वामीजी ने आज से 2000 वर्ष पहले लिखा था कि पंडितमरण, शांतिपूर्वक मरण अति उत्तम है जो भव पार कराता है। लगभग 900 साल पहले आचार्यश्री समन्तभद्रजी ने भी लिखा कि