Book Title: Anuvrat Sadachar Aur Shakahar
Author(s): Lokesh Jain
Publisher: Prachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan

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Page 27
________________ अणुव्रत सदाचार और शाकाहार बेशर्मी से कहते हैं कि मैंने तो अमुक हिंसादिक या अनैतिक प्रवृत्तियों में मात्र पैसा ही लगाया है, उसकी हिंसा का दोष मुझे कैसे लग सकता है? आचार्य भगवन् कहते हैं कि अरे ! मूढ़ जीव, उसी पैसे से तुम अपने उदर तथा विषयों की पूर्ति कर रहे हो तो पाप तो बराबर लगना ही है । 17 महात्मा गांधी साधन शुद्धि से ध्येय शुद्धि की बात करते हुए व्यावहारिक सत्य को सामने रखते हैं कि बबूल के पेड़ से आम प्राप्त नहीं हो सकते। आज पापाचार हिंसादिक कृत्यों में लिप्त आदमी किसी भी तरह बचने की गलियां निकालकर उसमें इस कदर डूब जाता है कि उसे पता ही नहीं चलता कि उसने कब जीवों का और अपने भावों का कितना नाश कर लिया? आयुर्वेद में प्रभावी व कारगर अपचार हेतु रसायनों द्वारा उपचार किया जाता किन्तु जैन व अन्य प्रमुख सभी धर्मों में अहिंसा को एक ऐसा रामबाण रसायन कहा गया है जो आत्मा की दशा को निर्मलतम बनाता है, दुनियादारी की उस आकुलता - व्याकुलता को खत्म करता है जो औरों के साथ होड़, अति महत्वाकांक्षाओं की संतुष्टि हेतु उठाए गए आजीविका के पापरूप कर्मों को आश्रय देने के चलते उदय होती है। इसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर लेता है । धर्म की रक्षा व नियमों की पालना के संदर्भ में गांधीजी और कस्तूर बा के जीवन प्रसंग का उदाहरण देते हुए आचार्यश्री ने कहा कि दक्षिण अफ्रीका में बा का स्वास्थ्य एकदम बिगड़ गया, डॉक्टर नें उनका जीवन बचाने हेतु मांस का शोरबा पिलाने की अनिवार्यता बताई। चूंकि बा होश में नहीं थी इसीलिए बापू से पूंछा गया लेकिन बापू ने कहा कि मैं कस्तूर से पूंछे बिना उसके मांसाहार त्याग का व्रत भंग नहीं करा सकता। होश में आने पर बा को मालूम पड़ा तब उन्होंने गांधीजी से कहा कि आपने बिल्कुल सही निर्णय लिया क्योंकि कोई भी जीवन व्रत संकल्प से बढ़कर नहीं होता । अहिंसा से हमारी आत्मा के चारित्र का निर्माण होता है। हिंसा तो पाप का ऐसा ढेर है इसके नीचे दबकर कब ढेर हो जाएं पता ही नहीं लगता। पापरूप आजीविका में मेज के नीचे से गांधीछाप धन आ सकता है, भौतिक समृद्धि दिख सकती है किन्तु मन की शांति कोसों दूर रहती है तथा जीव अपने ज्ञान स्वरूप का अनुभव नहीं कर पाता । अहिंसा से भाव शुद्धि होती है जो अंदर भी दिखती है और बाहर भी । अमेरिका जैसे विकसित देश जहाँ हिंसादिक साधन अधिक हैं वहाँ सहनशीलता कम है व्यवहार में लोग जरा-जरासी बात पर उनका उपयोग करने से नहीं कतराते, नजदीकी संबंधो का भी लिहाज नहीं करते जबकि अहिंसा परिणामों व पर्यावरण की रक्षा में अहम् भूमिका निभाती है । आज मुनिश्री सुश्रुतसागरजी ने एक रूपक के माध्यम से गुरु महिमा का गुणगान करते हुए कहा कि गुरु आश्रय एक अस्पताल है जहाँ दुर्भावनाओं,

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