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( १४ ) १ दुमपुफिया-इस अध्ययन में धर्म को उत्कृष्ट मंगल बताते हुए उसका
स्वरूप तथा उसकी आराधना करने वाले श्रमण की भिक्षा-विधि का सूचन
किया गया है। २ सामण्यपुव्वय--श्रमणधर्म में स्थिर रहने का उपदेश बड़ी ही रोचक शैली में
दिया गया है। ३ खुडिडयायार कहा---इसमें साधु के योग्य सामान्य आचार तथा अनाचार
का संक्षेप में वर्णन करते हुए अनाचार से दूर रहने का उपदेश है । ४ छज्जीवणिया -- इसमें षट्काया का स्वरूप बताकर पांच महाव्रतों का वर्णन
करते हुए मोक्षगति का क्रम बताया गया है । ५ पिण्डेसणा--इस अध्ययन में साधु की भिक्षाविधि का बड़ा ही सूक्ष्म एवं
उपयोगी विवेचन है। ६ महायारकहा इसमें साधु के आचार का विस्तृत वर्णन किया गया। ७ बक्कसुद्धि- इसमें भाषा का स्वरूप बताकर उसके गुण-दोषों का विस्तृत
विवेचन कर शुद्ध भाषा के प्रयोग की शिक्षा दी गई है। ८ आयारपणिही-आचार को उत्तम निधि बताते हुए उसकी रक्षा करने की
विशेष शिक्षा इस अध्ययन में है। ६ विणयसमाही--विनय ही धर्म का मूल है, इस सिद्धान्त को विविध रूपकों
व उपदेशों द्वारा समझाकर विनय का अत्यन्त सुन्दर विवेचन इस अध्ययन में है। स-निक्खू भिक्ष कोन होता है, उसमें क्या योग्यता तथा विशेषता होनी चाहिए, इसका वर्णन प्रस्तुत अध्ययन में है । रइवक्का पढम चूलिया संयम में रति (प्रीति) उत्पन्न कराने वाले वाक्यों
द्वारा हितशिक्षा का मधुर संचय इस अध्ययन में किया गया है। • विवित्तरिया चूलिका-दोषों से दूर रहता हुआ श्रमण आत्मगवेपणा के
मार्ग में कैसे बढे- इसका वर्णन प्रस्तुत चूलिका में है ।
इस प्रकार यह दशवकालिक की संक्षिप्त विषय-सूची है। विस्तृत विवरण पाठक आगे पढ़ेंगे ही।