Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: DeepratnasagarPage 13
________________ आभिओग-परंपरेणं छट्ठियं पुढविं गया ।। अज्झयणं-१, उद्देसो [१५२] कासिंचि गोयमा ! नमो साहिमो तं निबोधय । जाओ आलोयमाणाओ भाव-दोसेण || [१५३] सुहृतरगं पाव-कम्म-मल-खवलिय-तव-संजम-सीलंगाणं । निसल्लत्तं पसंसियं तं परमभावविसोहिए विणा खणद्धपि नोभवे [१५४] ता गोयम केसिमित्थीणं चित्त-विसोहि सुनिम्मला | भवंतरे वि नो होही जेण नीसल्लया भवे ।। [१५५] छट्ठ-दुम-दसम-दुवालसेहिं सुक्खंति के वि समणीओ । तह वि य सराग-भावं नालोयंती न छडडंति ।। [१५६] बहु-विह विकप्प-कल्लोल-माला उक्कलिगाहिणं । वियरंतं ते ण लक्खेज्जो दुरवगाह-मन-सागरं ।। [१५७] ते कहमालोयणं देंतु जासिं चित्तं पि नो वसे ? | सल्लं जो ताणमुद्धरए स-वंदनीओ खणे खणे ।। [१५८] असिनेह-पीइ-पुव्वेणं धम्म-सखुल्ल-सावियं । सीलंग-गुणट्ठाणेसुं उत्तमेसुं धरेइ जो ।। [१५९] इत्थी बहुबंधणुम्मुक्कं गिह-कलत्तादि-चारगा । सुविसुद्ध-सुनिम्मल-चित्तं नीसल्लं सो महायसो || [१६०] दद्वव्वो वंदनीओ य देविंदाणं स उत्तमो | दीनत्थी सव्व-परिभूयं विरइट्ठाणे जो उत्तमे धरे ।। [१६१] नालोएमी अहं समणी दे कहं किंचि साहणी । बहुदोसं न कहं समणी जं दिदं समणीहिं तं कहं ।। [१६२] असावज्ज-कहा समणी बहू आलंबणा कहा । पमायखावगा समणी पाविट्ठा बल-मोडी-कहा ।। [१६३] लोग-विरुद्ध-कहा तह य परववएसाऽऽलोयणी । सुय-पच्छित्ता तह य जायादी-मय-संकिया ।। [१६४] मूसगार-भीरुया चेव गारव-तिय-दूसिया तहा | एवमादि-अनेग-भाव-दोस-वसगा पावसल्लेहिं पूरिया ।। [१६५] निरंतरा अनंतेणं काल-समएण गोयमा अइक्कंतेणं अनंताओ समणीओ बह-दुक्खावसहं गया ।। [१६६] गोयम! अनंताओ चिट्ठति जा अनादी-सल्ल-सल्लिया । भाव-दोसेक्क-सल्लेहिं भंजमाणीओ कड़-विरसं घोरग्गग्गतरंफलं।। [१६७] चिट्ठइस्संति अज्जावि तेहिं सल्लेहिं सल्लिया । अनंत पि अनागयं कालं तम्हा सल्लं सुसुहमं पि । दीपरत्नसागर संशोधितः] [12] [३९-महानिसीहPage Navigation
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