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उत्तराध्ययन सूत्र
पुव्वा वाससया बहू-८४ लाख वर्ष को ८४ लाख वर्ष से गुणा करने पर जो संख्या प्राप्त होती हैं, उसे पूर्व कहते हैं। ७०५६०००००००००० अर्थात् सत्तर लाख छप्पन हजार करोड़ वर्षों का एक पूर्व होता है। इस प्रकार के बहुत (असंख्य) पूर्वो तक। 'बहु' शब्द असंख्य वाचक है तथा असंख्यात (बहु) सैंकड़ों वर्षों तक।
दशांग (१) चार कामस्कन्ध-क्षेत्र-वास्तु, हिरण्य, पशुसमूह और दास-पौरूषेय, (क्रीत एवम् मालिक की सम्पत्ति समझा जाने वाला दास, तथा पुरुषों-पोष्यवर्ग का समूह-पौरुष), (२) मित्रवान्, (३) ज्ञातिमान्, (४) उच्चगोत्रीय, (५) वर्णवान्, (६) नीरोग, (७) महाप्राज्ञ, (८) विनीत, (९) यशस्वी, (१०) शक्तिमान् ।
संजमं—यहाँ संयम का अर्थ है-सर्वसावद्ययोगविरतिरूप चारित्र ।
सिद्धे हवए सासए-सिद्ध के साथ शाश्वत शब्द लगाने का उद्देश्य यह है कि कई मतवादी मोहवश परोपकारार्थ मुक्त जीव का पुनरागमन मानते हैं । जैनदर्शन मानता है कि सिद्ध होने के बाद संसार के कारणभूत कर्मबीज समूल भस्म होने पर संसार में पुनरागमन का कोई कारण नहीं रहता।
॥ तृतीय अध्ययन : चतुरंगीय सम्पूर्ण ॥
बृहद्वत्ति, पत्र १८७
२. उत्तरा. मूल., अ.३, गा. १७-१८
३. बृहद्वृत्ति, पत्र १८६