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उत्तराध्ययनसूत्र रहना। यहाँ भावसमाधि ही ग्राह्य है। तात्पर्य है, जो ज्ञानादिप्राप्ति रूप भावसमाधि चाहता है, उसके लिए शास्त्रकार ने तीन बातें रखी हैं-उसका आहार उसका सहायक एवं उसका आवास-स्थान अमुक-अमुक गुणों से युक्त होना आवश्यक है। अगर उसका आहार अतिमात्रा में हुआ या अनेषणीय हुआ तो वह ज्ञानादि में प्रमाद करेगा, चारित्रपालन में विघ्न उपस्थित होगा। अगर उसकी साथी तत्त्वज्ञ या गीतार्थ नहीं हुआ तो ज्ञानादि प्राप्ति के स्रोत गुरुवृद्धसेवा आदि से उसे भ्रष्ट कर देगा। और उसका आवासस्थान स्त्री आदि से संसक्त रहा तो चित्तसमाधिभंग होने से गुरुवृद्ध-सेवा आदि से दूर हो जाएगा।
सहायक गुणाधिक या गुणों में सम न मिले तो?—पूर्वगाथा में उल्लिखित तीन बातों में से दो का पालन तो साधक के स्वाधीन है, परन्तु योग्य साथी मिलना उसके वश की बात नहीं है। अगर ज्ञानादि गुणों में स्वयं अधिक योग्य या ज्ञानादिगुणों में सम साथी न मिले तो पापों से (अर्थात् सावद्यकर्मों से) दूर एवं कामभोगों में अनासक्त रह कर एकाकी विचरण करना श्रेष्ठ है। यद्यपि सामान्यतया एकाकी विहार आगम में निषिद्ध है, किन्तु तथाविध गीतार्थ एवं ज्ञानादिगुणयुक्त साधु के लिए यहां उसका विधान किया गया है।२ ।
यहाँ तक दुःखमुक्ति के हेतुभूत ज्ञानादि की प्राप्ति के उपाय के सम्बन्ध में कहा गया है। अब दुःख की परम्परागत उत्पत्ति के विषय में कहते हैं। दुःख की परम्परागत उत्पत्ति
६. जहा य अण्डप्पभवा बलागा अण्डं बलागप्पभवं जहा य।
एमेव मोहाययणं खु तण्हा मोहं च तण्हाययणं वयन्ति॥ [६] जिस प्रकार बलाका (बगुली) अण्डे से उत्पन्न होती है और अण्डा बलाका से उत्पन्न होता है, उसी प्रकार मोह का आयतन (जन्मस्थान) तृष्णा है, तथैव तृष्णा का जन्मस्थान मोह है।
७. रागो य दासो विय कम्मबीयं कम्मं च मोहप्पभवं वयन्ति।
कम्मं च जाई-मरणस्स मूलं दुक्खं च जाई-मरणं वयन्ति॥ [७] कर्म (बन्ध) के बीज राग और द्वेष हैं। कर्म उत्पन्न होता है—मोह से। वह कर्म ही जन्ममरण का मूल है और जन्म-मरण ही (वास्तव में) दुःख हैं।
८. दुक्खं हयं जस्स न होइ मोहो मोहो हओ जस्स न होइ तण्हा।
तण्हा हया जस्स न होइ लोहो लोहो हओ जस्स न किंचणाई॥ [८](अतः) जिसके मोह नहीं है, उसने दुःख को नष्ट कर दिया, उसने मोह को मिटा दिया है, जिसके तृष्णा नहीं है, उसने तृष्णा का नाश कर दिया, जिसके लोभ नहीं है, उसने लोभ को समाप्त कर दिया, जिसके पास कुछ भी परिग्रह नहीं है, (अर्थात् जो अकिंचन है।)
विवेचन–तीनों गाथाओं का आशय-प्रस्तुत गाथाओं में निम्नोक्त प्रश्नों का समाधान प्रस्तुत किया गया है—(१) दुःख क्या है? जन्म-मरण ही, (२) जन्ममरण का मूल कारण क्या है? –कर्म (३) कर्म १. (क) बृहवृत्ति, पत्र ६२३ (ख) अभिधानराजेन्द्रकोष भा. ५, पृ. ४८३ २. (क) बृहवृत्ति, पत्र ६२६ (ख) वही, पृ. ४८३ (ग) तुलना करिये –दशवै.-चूलिका २/१०