________________
बत्तीसवाँ अध्ययन : प्रमादस्थान
५६१ वीतरागी की सर्वकर्मों और दुःखों से मुक्ति का क्रम
१०८. स वीयरागो कायसव्वकिच्चो खवेइ नाणावरणं खणणं।
तहेव जं दंसणमावरेइ जं चऽन्तरायं पकरेइ कम्मं॥ [१०८] वह कृतकृत्य वीतराग आत्मा क्षणभर में ज्ञानावरण (कर्म) का क्षय कर लेता है, तथैव दर्शन को आवृत्त करने वाले कर्म का भी क्षय करता है और अन्तरायकर्म को भी दूर करता है।
१०९. सव्वं तओ जाणइ पासए य अमोहणे होइ निरन्तराए।
___अणासवे झाणसमाहिजुत्ते आउक्खए मोक्खमुवेइ सुद्धे॥ [१०९] तदनन्तर (ज्ञानावरणीय आदि कर्मों के क्षय के पश्चात्) वह सब भावों को जानता है और देखता है, तथा वह मोह और अन्तराय से रहित हो जाता है। वह शुद्ध और आश्रवरहित हो जाता है। फिर वह ध्यान (शुक्लध्यान)-समाधि से युक्त होता है और आयुष्कर्म का क्षय होते ही मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
११०. सो तस्स सव्वस्स दुहस्स मुक्को जं बाहई सययं जन्तुमेयं।
दीहामयं विप्पमुक्को पसत्थो तो होइ अच्चन्तसुही कयत्थो॥ [११०] वह उन समस्त दुःखों से तथा दीर्घकालीन कर्मों से मुक्त होता है, जो इस जीव को सदैव बाधा-पीड़ा देते रहते हैं। तब वह दीर्घकालिक-अनादिकाल के रोगों से विमुक्त, प्रशस्त, अत्यन्त-एकान्त सुखी एवं कृतार्थ हो जाता है।
विवेचन–सम्पूर्ण मुक्ति की स्थिति—प्रस्तुत तीन गाथाओं में बताया गया है कि जब आत्मा वीतराग हो जाता है, तब वह क्रमशः ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय, इन चार घातिकर्मों का क्षय कर डालता है, फिर वह कृतकृत्य, निराश्रव एवं शुद्ध हो जाता है, उसमें पूर्वोक्त कोई भी विकार प्रवेश नहीं कर सकते। तदनन्तर वह शुक्लध्यान का प्रयोग करके आयुष्य का क्षय होते ही शेष चार अघातिकर्मों से मुक्त हो जाता है और सिद्ध-बुद्ध-मुक्त बन जाता है। समस्त कर्मों और दुःखों से मुक्त होकर वह निरामय, अत्यन्तसुखी, प्रशस्त और कृतार्थ हो जाता है। उपसंहार
१११. अणाइकालप्पभवस्स एसो सव्वस्स दुक्खस्स पमोक्खमग्गो।
_ वियाहिओ जं समुविच्च सत्ता कमेण अच्चन्तसुही भवन्ति॥-त्ति बेमि। [१११] अनादिकाल से उत्पन्न होते आए समस्त दुःखों से सर्वथा मुक्ति का यह मार्ग बताया गया है, जिसे सम्यक् प्रकार से स्वीकार (पा) कर जीव क्रमशः अत्यन्त सुखी (अनन्तसुखसम्पन्न) होते हैं।
-ऐसा मैं कहता हूँ विवेचन—निष्कर्ष—अध्ययन के प्रारम्भ में समूल दुःखों से मुक्ति का उपाय बताने की प्रतिज्ञा की गई थी, तदनुसार उपसंहार में स्मरण कराया गया है कि यही (पूर्वोक्त) अनादिकालीन सर्वदुःखों से मुक्ति का मार्ग है। ॥अप्रमादस्थान : बत्तीसवाँ अध्ययन सम्पूर्ण॥
00