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उत्तराध्ययन सूत्र / ६७४
७. यक्षादीप्त कभी किसी दिशा में बिजली चमकने जैसा, थोड़े समय पीछे जो प्रकाश होता है, वह यक्षादीत कहलाता है। अतः आकाश में जब तक यक्षाकार दीखता रहे तब तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिये।
८. धूमिका- कृष्ण - कार्तिक से लेकर माथ तक का समय मेघों का गर्भमास होता है इसमें धूम्र वर्ण की सूक्ष्म जलरूप धुंध पड़ती है वह धूमिका-कृष्ण कहलाती है। जब तक यह धुंध पड़ती रहे, तब तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए।
९. मिहिका श्वेत- शीतकाल में श्वेत वर्ण की सूक्ष्म जलरूप धुंध मिहिका कहलाती है। जब तक यह गिरती रहे, तब तक अस्वाध्याय काल है।
१०. रज उद्घात — वायु के कारण आकाश में चारों ओर धूलि छा जाती है। जब तक यह धूलि फैली रहती है, स्वाध्याय नहीं करना चाहिए।
उपरोक्त दस कारण आकाश सम्बन्धी अस्वाध्याय के हैं।
औदारिक शरीर सम्बन्धी दस अनध्याय
११-१२-१३. हड्डी, मांस और रुधिर - पंचेन्द्रिय तिर्यंच की हड्डी, मांस और रुधिर यदि सामने दिखाई दें, तो जब तक वहाँ से ये वस्तुएँ उठाई न जाएँ, तब तक अस्वाध्याय है। वृत्तिकार आप-पास के ६० हाथ तक इन वस्तुओं के होने पर अस्वाध्याय मानते हैं।
इस प्रकार मनुष्य सम्बन्धी अस्थि, मांस और रुधिर का भी अनध्याय माना जाता है। विशेषता इतनी है कि इनका अस्वाध्याय सौ हाथ तक तथा एक दिन रात का होता है। स्त्री के मासिक धर्म का अस्वाध्याय तीन दिन तक । बालक एवं बालिका के जन्म का अस्वाध्याय क्रमशः सात एवं आठ दिन पर्यन्त का माना जाता है ।
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१४. अशुचि मल-मूत्र सामने दिखाई देने तक अस्वाध्याय है।
१५. श्मशान — श्मशानभूमि के चारों ओर सौ-सौ हाथ पर्यन्त अस्वाध्याय माना जाता है।
१६. चन्द्रग्रहण – चन्द्रग्रहण होने पर जघन्य आठ, मध्यम बारह और उत्कृष्ट सोलह प्रहर पर्यन्त स्वाध्याय नहीं करना चाहिए ।
१७. सूर्यग्रहण सूर्यग्रहण होने पर भी क्रमशः आठ, बारह और सोलह प्रहर पर्यन्त अस्वाध्यायकाल माना गया है।
१८. पतन — किसी बड़े मान्य राजा अथवा राष्ट्रपुरुष का निधन होने पर जब तक उसका दाहसंस्कार न हो, तब तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए अथवा जब तक दूसरा अधिकारी सत्तारूढ न हो, तब तक शनैःशनैः स्वाध्याय करना चाहिए।
१९. राजव्युद्रग्रह — समीपस्थ राजाओं में परस्पर युद्ध होने पर जब तक शान्ति न हो जाए, तब तक और उसके पश्चात् भी एक दिन रात्रि स्वाध्याय नहीं करें। -
२०. औदारिक शरीर — उपाश्रय के भीतर पंचेन्द्रिय जीव का वध हो जाने पर जब तक कलेवर पड़ा
रहे, तब तक तथा १०० हाथ यदि निर्जीव कलेवर पड़ा हो तो स्वाध्याय नहीं करना चाहिए ।
अस्वाध्याय के उपरोक्त १० कारण औदारिक शरीर सम्बन्धी कहे गये हैं।
२१-२८. चार महोत्सव और चार महाप्रतिपदा
आषाढ- पूर्णिमा, आश्विन पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा और चैत्र पूर्णिमा ये चार महोत्सव हैं। इन पूर्णिमाओं के पश्चात् आने वाली प्रतिपदा को महाप्रतिपदा कहते हैं । इनमें स्वाध्याय करने का निषेध है।
२९-३२. प्रातः, सायं, मध्याह्न और अर्धरात्रि - प्रातः सूर्य उगने से एक घड़ी पहिले तथा एक घड़ी छे। सूर्यास्त होने से एक घड़ी पहले तथा एक घड़ी पीछे । मध्याह्न अर्थात् दोपहर में एक घड़ी आगे और एक घड़ी पीछे एवं अर्धरात्रि में भी एक घड़ी आगे तथा एक घड़ी पीछे स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। oo.