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उत्तराध्ययनसूत्र
[८८] उस तिन्दुक उद्यान में केशी और गौतम, दोनों का जो समागम हुआ, उससे श्रुत तथा शील का उत्कर्ष हुआ और महान् प्रयोजनभूत अर्थों का विनिश्चय हुआ।
८९. तोसिया परिसा सव्वा सम्मग्गं समुवट्ठिया।
संथुया ते पसीयन्तु भयवं केसिगोयमे॥ –त्ति बेमि। [८९] (इस प्रकार) वही सारी सभा (देव, असुर और मनुष्यों से परिपूर्ण परिषद्) धर्मचर्चा से सन्तुष्ट तथा सन्मार्ग–मुक्तिमार्ग में समुपस्थित (समुद्यत) हुई। उसने भगवान् केशी और गौतम की स्तुति की कि वे दोनों (हम पर) प्रसन्न रहें। -ऐसा मैं कहता हूँ।
विवेचन–महत्थऽत्थविणिच्छओ—महार्थ अर्थात् मोक्ष के साधनभूत शिक्षाव्रत एवं तत्त्वादि का निर्णय हुआ।
॥केशि-गौतमीय : तेईसवाँ अध्ययन समाप्त॥
בבם
१. उत्तरा. प्रियदर्शिनीटीका भा.३, पृ. ९६८