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[८] अयोग्य बैल वाहन में जोतने पर जैसे वाहन को तोड़ने वाले होते हैं, वैसे ही धैर्य में दुर्बल शिष्यों को धर्मयान में जोतने पर वे भी उसे तोड़ देते हैं।
विवेचन — खलुंक : अनेक अर्थों में (१) खलुंक का संस्कृतरूप अनुमानतः 'खलोक्ष' हो तो उसका अर्थ दुष्ट बैल, (२) नियुक्तिकार के अनुसार जुए को तोड़कर उत्पथ पर भागने वाला बैल, अथवा (३) वक्र या कुटिल, जिसे कि झुकाया-सुधारा नहीं जा सकता, (४) खलुंक शब्द मनुष्य या पशु का विशेषण हो, तब उसका अर्थ है - दुष्ट या अविनीत मनुष्य अथवा पशु ।'
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एगं डसइ पुच्छंमि : दो व्याख्याएँ – (१) इसका सम्बन्ध क्रुद्ध शकटवाहक (सारथि) से हो तो ही अर्थ है जो ऊपर दिया गया है, किन्तु (२) प्रकरणसंगत अर्थ दुष्ट बैल से सम्बन्धित प्रतीत होता है । २
खुलंका जारिसा जोजा दुस्सीसा वि हु तारिसा । जोइया धम्मजाणम्मि भज्जन्ति धिइदुब्बला ||
सढे बालगवी वए : दो व्याख्याएँ — कोई शठ हो जाता है, अर्थात् धूर्तता अपना लेता है और कोई दुष्ट बैल जवान गाय के पीछे दौड़ता है, (२) कोई शठ (धूर्त) व्यालगव — दुष्ट बैल भाग जाता है । ३
१.
'उज्जूहित्ता' या 'उज्जाहित्ता' पलायए – (१) वाहन और स्वामी को उन्मार्ग में छोड़ कर भाग जाता है । (२) अपने स्वामी और शकट को उन्मार्ग में लाकर किसी विषम प्रदेश में गाड़ी को तोड़ कर स्वयं भाग जाता है।
२
धम्मजाणंमि — मुक्तिनगर में पहुँचने वाले धर्मयान (संयम-रथ) में जोते हुए (प्रेरित) वे धृतिदुर्बल (संयम में दु:स्थिर) कुशिष्य उसे ही तोड़ देते हैं, अर्थात् – संयमक्रियानुष्ठान में स्खलित हो जाते हैं। 4 आचार्य गार्ग्य का चिन्तन
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उत्तराध्ययनसूत्र
४
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इड्ढीगारविए एगे एगेऽत्थ रसगारवे । सायागारविए एगे एगे सुचिरकोहणे ॥
[९] (गार्ग्याचार्य — ) (मेरा) कोई (शिष्य) ऋद्धि (ऐश्वर्य) का गौरव (अंहकार) करता है, इनमें
(क) 'खलुंकान्-गलिवृषभान् ।'- सुखबोधा, पत्र ३१६
(ख)
अवदाली उत्तसओ, जुत्तजुंग भंज, तोत्तभंजो य । उप्पह-विप्पहगामी एए खलुंका भवे गोणा ॥ २४ ॥ . तं दव्वेसु खलुंकं वक्ककुडिल चेट्ठमाइद्धं ॥ २५ ॥
जे किर गुरुपडिणीया, सबला असमाहिकारगा पावा । कलहकरणस्सभावा जिणवयणे ते किर खलुंका॥ २८॥ पिसुणा परोवयावी भिन्नरहस्सा परं परिभवंति । निव्वेयणिज्जा सढा, जिणवयणे से किर खलुंका ॥ २९ ॥
- उत्तरा . निर्युक्ति.
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(क) बृहद्वृत्ति, पत्र ५५१ (ख) The Sacred Books of the East Vol. XLV Uttara. P. 150 डॉ. जैकोबी (क) बालगवी वत्ति - बालगवीं - अवृद्धां गाम्,
(ख) यदि वा आर्षत्वात् ..... व्यालगवो- दुष्टबलीवर्दः ।
- बृहद्वृत्ति, पत्र ५५१
(क) उत्प्राबल्येन (जूहित्ता इति) स्वस्वामिनं शकटं उन्मार्गे लात्वा कुत्रचिद् विषमप्रदेशे भङ्क्त्वा स्वयं पलायते । (ख) उत्तरा. (गुजराती भाषान्तर भावनगर) भा. २, पत्र २२०
उत्तरा वृत्ति, अभिधान रा. कोष भा. ३, पृ. ७२६