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बारहवाँ अध्ययन : हरिकेशीय
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ब्रह्मचर्य, सत्य, तप और संयम से मातंगऋषि शुद्ध हो गए थे तीर्थयात्रा से शुद्धि नहीं होती । अथवा ब्रह्म का अर्थ अभेदोपचार से ब्रह्मवान् साधु है, सन्ति का अर्थ है - विद्यमान हैं। आशय यह है कि 'साधु मेरे तीर्थ हैं।' कहा भी है
'साधूनां दर्शनं श्रेष्ठं, तीर्थभूता हि साधवः । '
'साधुओं का दर्शन श्रेष्ठ है, क्योंकि साधु तीर्थभूत हैं । '
अणाविले अत्तपसन्नलेसे- अनाविल का अर्थ है - मिध्यात्व और तीन गुप्ति की विराधनारूप कलुषता से रहित। ‘अत्तपसन्नलेसे' के दो रूप - आत्मप्रसन्नलेश्य:- जिसमें आत्मा (जीव ) की प्रसन्नः अकलुषित पीतादिलेश्याएँ हैं, वह, अथवा आप्तप्रसन्नलेश्य :- दो अर्थ - प्राणियों के लिए आप्त-इह - परलोकहितकर प्रसन्न लेश्याएं जिसमें हों, अथवा जिसने प्रसन्नलेश्याएँ प्राप्त की हैं, वह । ये दोनों विशेषण हृद और शान्तितीर्थ के हैं।
॥ बारहवाँ : हरिकेशीय अध्ययन समाप्त ॥
बृहद्वृत्ति, पत्र ३७१ से ३७३ तक
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