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सोलहवाँ अध्ययन : ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान
पणिहाणवं—चित्त की स्वस्थता से युक्त होकर भोजन करे, न कि रागद्वेष या क्रोधादि वश होकर । सरीरमंडणं-शरीरपरिमण्डन, अर्थात्—केशप्रसाधन आदि।
कामगुणे : व्याख्या-इच्छाकाम और मदनकाम रूप द्विविध काम के गुण, अर्थात्-उपकारक या साधन अथवा साधन रूप उपकरण।२। आत्मान्वेषक ब्रह्मचर्यनिष्ठ के लिए दस तालपुटविष-समान
११. आलओ थीजणाइण्णो थीकहा य मणोरमा। ___ संथवो चेव नारीणं तासिं इन्दियदरिसणं॥ १२. कूइयं रुइयं गीयं हसियं भुत्तासियाणि य।
पणीयं भत्तपाणं च अइमायं पाणभोयणं॥ १३. गत्तभूसणमिठं च कामभोगा य दुजया।
नारस्सऽत्तगवेसिस्स विसं तालउडं जहा॥ [११-१२-१३](१) स्त्रियों से आकीर्ण आलय (निवासस्थान), (२) मनोरम स्त्रीकथा, (३) नारियों का परिचय (संसर्ग), (४) उनकी इन्द्रियों का (रागभाव से) अवलोकन ॥ ११॥
(५) उनके कूजन, रोदन, गीत तथा हास्य (हंसी मजाक) को (दीवार आदि की ओट में छिप कर सुनना), (६)(पूर्वावस्था में) भुक्त भोग तथा सहावस्थान का स्मरण-(चिन्तन) करना, (७) प्रणीत पानभोजन और (८) अतिमात्रा में पान-भोजन ॥ १२॥
(९) स्त्रियों के लिए इष्ट शरीर की विभूषा करना और (१०) दुर्जय काम-भोग; ये दस आत्मगवेषक मनुष्य के लिए तालपुट विष के समान हैं ॥ १३ ॥
विवेचन—फलितार्थ-प्रस्तुत तीन गाथाओं में ब्रह्मचर्य-समाधि-स्थान की उन्हीं नौ गुप्तियों के भंग को तालपुट विष के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
संस्तव : प्रासंगिक अर्थ-स्त्रियों का परिचय, एक ही आसन पर बैठने या साथ-साथ भोजनादि सेवन से होता है।
काम और भोग-शास्त्रानुसार काम शब्द, शब्द एवं रूप का वाचक है और भोग शब्द है-रस, गन्ध और स्पर्श का वाचक।
विसं तालउंड जहा–तालपुट विष शीघ्रमारक होता है। उसे ओठ पर रखते ही, ताल या ताली बजाने जितने समय में मनुष्य की मृत्यु हो जाती है। इसी प्रकार ब्रह्मचर्यसमाधि में बाधक ये पूर्वोक्त १० बातें ब्रह्मचारी साधक के संयम की शीघ्र विघातक हैं। ब्रह्मचर्य-समाधिमान् के लिए कर्त्तव्यप्रेरणा
१४. दुजए कामभोगे य निच्चसो परिवज्जए।
संकट्ठाणाणि सव्वाणि वजेज्जा पणिहाणवं॥ १. बृहद्वृत्ति, पत्र ४२९ यथार्थ-संयमनिर्वाहणार्थ, न तु रूपाद्यर्थम्।
प्रणिधानवान्-चित्तस्वास्थ्योपेतो, न तु रागद्वेषवशगोभुंजीत ॥ २. बृहद्वृत्ति, पत्र ४२९ ३. बृहवृत्ति, पत्र ४२९