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तेईसवाँ अध्ययन : केशी-गौतमीय
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धम्मो दीवो०o - जब केशी श्रमण ने द्वीप आदि के विषय में पूछा तो गौतम ने धर्म (विशाल जिनोक्त रत्नत्रयरूप या श्रुतचारित्ररूप शुद्ध धर्म) को ही महाद्वीप बताया है। वस्तुतः धर्म इतना विशाल एवं व्यापक द्वीप है कि संसारसमुद्र में डूबते या उसके जन्म-मरणादि विशाल तीव्रप्रवाह में बहते हुए प्राणी को स्थान, शरण, आधार या स्थिरता देने में सक्षम है। संसार के समस्त प्राणियों को वह स्थान शरणादि दे सकता है, वह इतना व्यापक है ।
महाउदगवेगस्स गई तत्थ न विज्जइ — महान् जलप्रवाह के वेग की गति वहाँ नहीं है, जहाँ धर्म है। क्योंकि जो प्राणी शुद्ध धर्म की शरण ले लेता है, धर्मरूपी द्वीप में आकर बस जाता है, टिक जाता है, वह जन्म, जरा, मृत्यु आदि के हेतुभूत कर्मों का क्षय कर देता है, ऐसी स्थिति में जहाँ धर्म होता है, वहाँ जन्म, जरा, मरणादिरूप तीव्र जलप्रवाह पहुँच ही नहीं सकता। धर्मरूपी महाद्वीप में जन्ममरणादि जलप्रवाह का प्रवेश ही नहीं है। धर्म ही जन्ममरणादि दुःख बचा कर मुक्तिसुख का कारण बनता है। २
दसवाँ प्रश्नोत्तर : महासमुद्र को नौका से पार करने के सम्बन्ध में
६९. साहु गोयम ! पन्ना ते छिन्नो मे संसओ इमो । अन्न वि संसओ मज्झं तं मे कहसु गोयमा ! ॥
[ ६९ ] ( केशी कुमारश्रमण ) - हे गौतम! आपकी प्रज्ञा बहुत सुशोभन है, आपने मेरा संशयनिवारण कर दिया। परन्तु मेरा एक और संशय । गौतम ! उसके सम्बन्ध में भी मुझे बताइए । अण्णवंसि महोहंसि नावा विपरिधावई । जंसि गोयमारूढो कहं पारं गमिस्ससि ? ॥
७०.
[७०] गौतम ! महाप्रवाह वाले समुद्र में नौका डगमगा रही ( इधर-उधर भागती) है, (ऐसी स्थिति में) आप उस पर आरूढ होकर कैसे (समुद्र) पार जा सकोगे ?
७१. जा उ अस्साविणी नावा न सा पारस्स गामिणी ।
जा निरस्साविणी नावा सा उ पारस्स गामिणी ॥
[७१] ( गणधर गौतम) – जो नौका छिद्रयुक्त (फूटी हुई) है, वह (समुद्र के) पार तक नहीं जा सकती, किन्तु जो नौका छिद्ररहित है, वह (समुद्र) पार जा सकती है।
७२. नावा य इइ का वृत्ता? केसी गोयममब्बवी ।
केसिमेवं बुवंतं तु गोयमो इणमब्बवी ॥
[७२] (केशी कुमार श्रमण ) - केशी ने गौतम से पूछा- आप नौका किसे कहते हैं? केशी के यों पूछने पर गौतम ने इस प्रकार कहा
७३.
१.
२.
सरीरमाहु नाव त्ति जीवो वुच्चइ नाविओ । संसारो अण्णवो वत्तो जं तरन्ति महेसिणो ॥
उत्तरा वृत्ति, अ. रा. को. भा. ३, पृ. ९६५ उत्तरा वृत्ति, अ. रा. को. भा. ३, पृ. ९६५