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दशम अध्ययन: द्रुमपत्रक
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तुम इस समय जिन नहीं हो, परन्तु अनेक प्राणियों द्वारा अभिमत मार्ग (जिनत्वप्राप्ति का पथ ) मैंने तुम्हें बता दिया है, वह तुम्हें दिखता (ज्ञात) ही है, इसलिए जिनरूप से मेरे विद्यमान रहते मेरे द्वारा उपदिष्ट मार्ग में ...... । (४) चौथी व्याख्या मूलार्थ में दी गई है। वही व्याख्या अधिक संगत लगती है । १
अबले जह भारवाहए : इस सम्बन्ध एक दृष्टान्त एक व्यक्ति धन कमाने के लिए परदेश गया। वहाँ से वह सोना आदि बहुत-सा द्रव्य लेकर अपने गाँव की ओर लौट रहा था । वजन बहुत था और वह दुर्बल था। जहाँ तक सीधा-साफ मार्ग आया, वहाँ तक वह ठीक चलता रहा, किन्तु जहाँ ऊबड़-खाबड़ रास्ता आया, वहाँ वह घबराया और धन- गठरी वहीं फैंक कर खाली हाथ घर चला आया। अब वह सब कुछ गँवा देने के कारण निर्धन हो गया और पछताने लगा । इसी प्रकार जो साधक प्रमादवश विषममार्ग में जाकर संयमधन को गँवा देता है, उसे बाद में बहुत पछताना पड़ता है।
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अकलेवरसेणिं – अकलेवरश्रेणि- कलेवर का अर्थ है - शरीर । मुक्त आत्मा अशरीरी होते हैं । उनकी श्रेणी की तरह - कर्मों का सर्वथा क्षय करने वाली विचार श्रेणी - क्षपकश्रेणी कहलाती है। ३ ३७. बुद्धस्स निसम्म भासियं सुकहियमट्ठपओवसोहियं । रागं दोसं च छिन्दिया सिद्धिगई गए गोयमे ॥
-त्ति बेमि । [३७] अर्थ और पदों (शब्दों) से सुशोभित एवं सुकथित बुद्ध (केवलज्ञानी भगवान् महावीर) की वाणी सुनकर राग-द्वेष को विच्छिन्न कर श्री गौतमस्वामी सिद्धिगति को प्राप्त हुए ।
- ऐसा मैं कहता हूँ ।
विवेचन— अट्ठपओवसोहियं - दो अर्थ - ( १ ) अर्थप्रधान पद अर्थपद । (२) न्यायशास्त्रानुसार मोक्षशास्त्र के चतुर्व्यूह (हेय-दुःख तथा दुःखनिर्वर्त्तक, आत्यन्तिकहान - दुःखनिवृत्ति - मोक्षकारण, उपाय और अधिगन्तव्य - लभ्य मोक्ष) को अर्थपद कहा गया है।
- शास्त्र,
॥ द्रुमपत्रक : दशम अध्ययन समाप्त ॥
१. (क) बृहद्वृत्ति, पत्र ३४१
(ग) उत्तरा० (सानुवाद, मु० नथमलजी) पृ० १२७
२. बृहद्वृत्ति, पत्र ३४१
३. बृहद्वृत्ति, पत्र ३४१
४. (क) बृहद्वृत्ति, पत्र ३४१
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(ख) उत्त० प्रियदर्शिनीटीका, भा० २, पृ० ५०७ से ५०९ तक
(ख) न्यायभाष्य १/१/१
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