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उत्तराध्ययनसूत्र
हानिरूप है। ब्राह्मणों द्वारा यक्षाधिष्ठित मुनि को मारने-पीटने का आदेश तथा उसका पालन
१८. के एत्थ खत्ता उवजोइया वा अज्झावया वा सह खण्डिएहिं।
एयं खु दण्डेण फलेण हन्ता कण्ठम्मि घेत्तूण खलेज जो णं?॥ [१८] (रुद्रदेव -) है कोई यहाँ क्षत्रिय, उपज्योतिष्क (-रसोइये) अथवा विद्यार्थियों सहित अध्यापक, जो इस साधु को डंडे से और फल (बिल्व आदि फल या फलक-पाटिया) से पीटकर और कण्ठ (गर्दन) पकड़ कर यहाँ से निकल दे।
१९. अज्झावयाणं वयणं सुणेत्ता उद्धाइया तत्थ बहू कुमारा।
दण्डेहि वित्तेहि कसेहि चेव समागंया तं इसि तालयन्ति॥ _ [१९] अध्यापकों (उपाध्यायों) का वचन (आदेश) सुनकर बहुत से कुमार (छात्रादि) दौड़कर वहाँ आए और डंडों से, बेंतों से और चाबुकों से उन हरिकेशबल ऋषि को पीटने लगे।
विवेचन - विशिष्ट शब्दों के अर्थ -खत्ता–क्षत्र, क्षत्रियजातीय, उवजोइया -उपज्योतिष्क, अर्थात् -अग्नि के पास रहने वाले रसोइए अथवा ऋत्विज, खंडिकेहिं -खण्डिकों - छात्रों सहित। २
दंडेण : दो अर्थ -(१) बृहद्वृत्ति के अनुसार – डंडों से, (२) वृद्धव्याख्यानुसार – दंडों से - बांस, लट्ठी आदि से, अथवा कुहनी मार कर। ३ भद्रा द्वारा कुमारों को समझा कर मुनि का यथार्थ परिचय-प्रदान
२०. रन्नो तहिं कोसलियस्य धूया भद्द त्ति नामेण अणिन्दियंगी।
तं पासिया संजय हम्ममाणं कुद्धे कुमारे परिनिव्ववेइ॥ _ [२०] उस यज्ञपाटक में राजा कौशलिक की अनिन्दित अंग वाली (अनिन्द्य सन्दरी) कन्या भद्रा उन संयमी मुनि को पीटते देख कर क्रुद्ध कुमारों को शान्त करने (रोकने) लगी।
२१. देवाभिओगेण निओइएणं दिन्ना मुरन्ना मणसा न झाया।
नरिन्द-देविन्दऽभिवन्दिएणं जेणऽम्हि वन्ता इसिणा स एसो॥ [२१] (भद्रा -) देव (यक्ष) के अभियोग (बलवती प्रेरणा) से प्रेरित (मेरे पिता कौशलिक) राजा ने मुझे इन मुनि को दी थी, किन्तु मुनि ने मुझे मन से भी नहीं चाहा और मेरा परित्याग कर दिया। (ऐसे नि:स्पृह) तथा नरेन्द्रों और देवेन्द्रों द्वारा अभिवन्दित (पूजित) ये वही ऋषि हैं।
२२. एसो हु सो उग्गतवो महप्पा जिइन्दिओ संजओ बम्भयारी।
जो मे तया नेच्छइ दिजमाणिं पिउणा सयं कोसलिएण रन्ना॥ १. बृहवृत्ति, पत्र ३६३ २. वही, पत्र ३६२ ३. (क) वही, पत्र ३६३ (ख) चूर्णि, पृ. २०७