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भगवान् से पूछा गया -
प्र. सामाइएणं भंते! जीवे किं जणय ?
भगवन्! सामायिक से जीव को क्या प्राप्त होता है?
भगवान् ने समाधान दिया
उ. सामाइएणं सावज्जजोगविरइं जणय ।
सामायिक से जीव सावद्य योगों की प्रवृत्ति से विरत होता है।
सामायिक में स्थित साधक पर सावद्य योग- पाप कभी आक्रमण नहीं कर सकते । पापों का मैल सामायिक - सम्पन्न साधक की आत्मा में कदापि प्रविष्ट नहीं हो सकता ।
सामायिक ही सिद्धि है, और उसका साधन भी सामायिक ही है। साधन और साध्य वह स्वयं है। आवश्यक में प्रवेश का इच्छुक साधक सामायिक से ही आत्मशुद्धि की यात्रा प्रारंभ करता है। इसीलिए वह सर्वप्रथम सामायिक - आवश्यक में अवगाहन करता है।
प्रथम अध्ययन : सामायिक
उत्त. २९/८
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Avashyak Sutra