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भावार्थ : पृथ्वी ही जिन एक इन्द्रिय वाले जीवों का शरीर है, उसके संबंध में यदि मैंने किसी प्रकार की हिंसा की हो, तो मैं उसकी आलोचना करता हूं।
सचित्त मिट्टी, मरुड़, गेरु, पाण्डु, हिंगलु, हरताल, नमक, खड़िया, जंगाल (ये सभी पृथ्वी से उत्पन्न होने से उस के अंग माने जाते हैं) एवं सचित्त रज आदि की विराधना मैंने स्वयं की हो, दूसरों से करायी हो, अथवा विराधना करने वालों की अनुमोदना की हो, तो उक्त विराधना से उत्पन्न दोषों का मैं प्रायश्चित्त करता हूं। मेरा वह दुष्कृत मिथ्या हो ।
Self Criticism in Respect of Earth-bodies Beings: I feel sorry for any fault committed in case of earth-bodied living beings Earth bodied living beings are in the form of soft earth, hard earth, red earth (gem), hingalu, hartaal, salt, kharia rust, organic earth, I might have caused harm or appreciated those who might have caused such disturbance. I feel sorry for them. May I be absolved of that sin.
अप्काय विषयक अतिचार आलोचना
अप्काय के विषय में जे कोई अतिचार लागा होय ते मैं आलोउं, अप्काय - ओस, हिम, गड़ा, फुंवार, छार, धूयर प्रमुख की विराधना करी होय, कराई होय, करतां प्रति अनुमोदी होय, जो मे देवसि अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
भावार्थ : जल ही जिन जीवों का शरीर है, उन जीवों से संबंधित यदि मैंने हिंसादि दोषों का सेवन किया है तो मैं आत्मनिन्दा करता हूं।
जल के विविध रूपों, जैसे कि ओस, बरफ, ओला, फुआर, छार, धुन्ध आदि के आश्रि जीवों की यदि मैंने स्वयं विराधना की हो, दूसरों से कराई हो, विराधना करने वालों को अच्छा जाना हो, तो मैं प्रायश्चित्त करता हूं। उक्त दोषों से मैं पीछे हटता हूं। मेरे वे दुष्कृत निष्फल हों।
Self Criticism regarding Water Bodied Beings: I feel sorry for any fault committed in respect of water-bodied living being, dew, snow, hail, frost, mist are various forms of water-bodied beings. In case I may have caused, got caused or appreciated any hurt caused to such beings during the day. I repent for the same and pray that I may be absolved of that sin.
I curse myself for any violence caused to such beings whose body is made of
water.
प्रथम अध्ययन : सामायिक
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Avashyak Sutra
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