Book Title: Agam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 283
________________ peekesekaskedeskeleslelessleshaskskskskelese selessleeleshe saleshe steele slesslesalesisekestlesslesheste se sleep विधि : तत्पश्चात् 'उत्तरीकरण सूत्र' का चिंतन करें। उसके बाद कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थिर होकर 99 प्रकार के अतिचारों का ध्यान करें। Procedure: Thereafter, he should contemplate 'Pratikraman Sutra'. After that in the state of kayotsarg, he should contemplate on 99 deviations that are likely in the conduct of a Shravak. सूचना : श्रुतज्ञान के 14 एवं दर्शन के 5 अतिचारों से संबंधित आलोचना सूत्रों के लिए देखिए पृष्ठ 31-341) Note: See pp. 31-34 for 14 deviations relating to study of scriptures and five deviations relating to right faith or right perception. . प्रथम अणुव्रत विषयक अतिचार आलोचना . पहिला थूल प्राणातिपात-वेरमण व्रत ने विषय जो कोई अतिचार लागा होय ते आलोउं, 1. रीस वसे गाढा बंधण बांध्या होय, 2. गाढ़ा घाव घाल्या होय, 3. अवयव ना विच्छेद कीधा होय, 4. अतिभार घाल्यो होय, 5. भात पाणी का विच्छेद कीधा होय, जो मे देवसि अइयार कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। ____ भावार्थ : प्रथम प्राणातिपातविरमण नामक अणुव्रत में यदि किसी प्रकार का अतिचार लगा हो तो मैं उस अतिचार की आलोचना करता हूं। प्रथम अणुव्रत के पांच अतिचार हैं, यथा(1) क्रोध के वशीभूत हो कर त्रस जीवों को कठोर बन्धनों से बांधा हो, (2) तीव्र प्रहार से घायल किया हो, (3) जीवों के अंगोपांगों का छेदन किया हो, (4) सामर्थ्य से अधिक भार लादा हो, एवं (5) उचित समय पर अन्न-जल नहीं दिया हो, अथवा अपने अधीन काम करने वाले सेवक आदि को उचित वेतन न दिया हो, इस प्रकार मैंने यदि किसी अतिचार का सेवन किया है तो मैं उस दोष से पीछे हटता हूं। मेरा वह दुष्कृत मिथ्या हो। Exposition: In the practice of first minor vow (anuvrat), if I have committed any minor fault or deviation. I repent for the same. There are five likely deviations namely (1) In a fit of anger to tie tightly the mobile living hangs (2) to cause serious hurt to them (3) to cut limbs or sub-parts of living beings (4) to burden them with a load more than their capability (5) not to provide food or water at proper time or not to give wages to the servant at proper time. In case I may have committed any such fault. I feel sorry for the same and refrain from the same in future. May my fault be condoned. श्रावक आवश्यक सूत्र // 209 // Ist Chp. : Samayik

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