Book Title: Agam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 357
________________ मसम्माणेमि कल्लाणं मंगलं 4 श्रुत आचार्य प्रवर्तक श्री अमर मुनि जी म. प्रस्तुत सूत्र के सम्पादक श्रुत आचार्य प्रवर्तक श्री अमरमुनि जी, श्री वर्द्धमान स्थानकवासी जैन श्रमणसंघ के एक तेजस्वी संत हैं। जिनवाणी के परम उपासक गुरुभक्त श्री अमरमुनि जी का जन्म वि.सं. 1993 भादवा सुदि 5 (सन 1936), क्वेटा (बलूचिस्तान) के मल्होत्रा परिवार में हुआ। 11 वर्ष की लघुवय में आप जैनागम रत्नाकर आचार्य सम्राट् श्री आत्माराम जी महाराज की चरण-शरण में आये और आचार्य देव ने अपने प्रिय शिष्यानुशिष्य भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी महाराज को इस रत्न को तराशने । सँवारने का दायित्व सौंपा। गुरुदेव श्री भण्डारी जी महाराज ने अमर मुनि जी को सचमुच अमरता के पथ पर बढ़ा दिया। आपने संस्कृत-प्राकृतआगम-व्याकरण-साहित्य आदि का अध्ययन करके एक ओजस्वी प्रवचनकार, तेजस्वी धर्म-प्रचारक तथा जैन आगम साहित्य के अध्येता और व्याख्याता के रूप में जैन समाज में प्रसिद्धि प्राप्त की। आपश्री ने भगवती सूत्र (4 भाग), प्रश्नव्याकरण सूत्र, सूत्रकृतांग सूत्र (2 भाग) आदि आगमों की सुन्दर विस्तृत व्याख्याएँ की हैं। चित्र वश्यक सत्र श्रुत आचार्य प्रवर्तक श्री अमर मुनि LOTRATED VASHYAK SUTRA Shrut Acharya Pravartak Shri Amar Muni Ji M. zut Acharya Pravartak Shri Amar Muni ज्जुवासामि मत्थएण वेदामि The editor-in-chief of this Sutra, is a brilliant ascetic affliated with Shri Vardhaman Sthanakvasi Jain Shraman Sangh A great worshiper of the tenets of Jina and a devotee of his Guru, Shri Amar Muni Ji was born in a Malhotra family of Queta (Baluchistan) on Bhadva Sudi 5thin the year 1993V. He took refuge with Jainagam Ratnakar Acharya Samrat Shri Atmaram Ji M. at an immature age of eleven years. Acharya Samrat entrusted his dear grand-disciple, Bhandari Shri Padmachandra Ji M. with the responsibility of cutting and polishing this raw gem. Gurudev Shri Bhandari Ji M. indeed, put Amar (immortal) on the path of immortality. He studied Sanskrit, Prakrit, Agams, Grammar and Literature to gain fame in the Jain society as an eloquent orator, an effective religions preacher and a scholar and interpreter of Jain Agam literature. He has written nice and detailed commentaries of Bhagavati Sutra (in four parts), Prahsnavyakaran Surtra (in two parts), Sutrakritanga Sutra (in two parts) and some other Agams.

Loading...

Page Navigation
1 ... 355 356 357 358