Book Title: Agam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 294
________________ संलेखन kಣೆಗಳkಳಲ್ಲಿ palesalesslesale sales sleepleake sakslaslesale skesake okesle skesaksae salenlesslesslesalese.slesaleslesalenlesslesalesale.sleelesslesalesale sleelcatree संलेखना विषयक अतिचार आलोचना संलेखणा के विषय जे कोई अतिचार लागो होय ते आलोउं, 1. इहलोगासंसप्पउग्गा, परलोगा-संसप्पउग्गा, 3. जीविया-संसप्पउग्गा, 4. मरणा-संसप्पउग्गा, 5. कामभोगा-संसप्पउग्गा, मा मज्झ हुज्ज मरणंते वि, जो मे देवसि अइयार कओ तस्स * मिच्छा मि दुक्कडं। भावार्थ : संलेखना के विषय में यदि कोई अतिचार लगा हो तो मैं उसकी आलोचना करता हूं। संलेखना के पांच अतिचार इस प्रकार हैं, यथा-(1) संलेखना में इस लोक संबंधी सुख, यश, वैभव की कामना की हो, (2) परलोक संबंधी-दिव्य भोगोपभोगों, इन्द्रादि पद की कामना की हो, (3) अधिक समय तक जीने की आकांक्षा की हो, (4) शीघ्र मृत्यु की कामना की हो, एवं (5) काम-भोगों की आकांक्षा की हो, उक्त अतिचारों में से यदि कोई अतिचार मेरी संलेखना-साधना में लगा है तो उससे मैं पीछे हटता हूं। मेरा वह दुष्कृत मिथ्या हो। Expositions: In case I have committed any fault with regard to samlekhana, I confess the same voluntarily. There are five faults relating to samlekhana. They are : 1. I may have thought of any worldly pleasure or grandeur in the span of life, 2. I may have anticipated heavenly enjoyments in the next life or desired, 3. I may have alive to remain for a long period, 4. I may have desired early death, 5. I may have desired sensual enjoyments. In case any one of the above said faults have been committed. I withdraw myself from the same. May my sin he condoned. समुच्चय अतिचार आलोचना सूत्र चौदह ज्ञान के, पांच सम्यक्त्व के, बारा व्रतों के पांच-पांच-ये साठ, पन्द्रह कर्मादान के, पांच संलेखणा के, निन्याणवें अतिचारों के विषय जे कोई अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अणाचार सेव्या होय, सेवाया होय, सेवतां प्रति अणुमोद्या होय, जो मे देवसि । अइयार कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। भावार्थ : ज्ञान के 14, सम्यक्त्व के 5, बारह व्रतों के 60, कर्मादानों के 15, एवं संलेखना के 5, ऐसे कुल 99 अतिचारों के विषय में अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार एवं अनाचार के रूप में यदि कोई दोष मैंने स्वयं सेवन किया हो, दोषों के सेवन के लिए किसी को प्रोत्साहित किया हो अथवा दोषों को सेवन करने वालों की प्रशंसा की हो, तो तत्संबंधी मेरे दोष निष्फल हों। उक्त पापों से मैं अपनी आत्मा को अलग करता हूं। Halesalestastestosclesslesaksesessleshalasseslesalelosolestestradesdesesessestasksksksksksksksksdeste setstalksekakakakestatest taskestradeshadrakata ಬಳಕಳಬಳ प्रथम अध्ययन : सामायिक // 220 // Shravak Avashyak Sutra भाभभभभParaanaapaaye

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