Book Title: Agam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 319
________________ Pawa Explanation: That activity which does not serve any purpose is called worthless activity. The demerit committed by engaging in cultivation, trade and the like is termed as useful worldly activity (dand). In the absence of cultivation it is impossible for a Shravak to lead a proper life but some activities are of such a nature that they do not serve any useful purpose. They are done in a state of improper knowledge, slackness or just for momentary engagement. They fall in the category of worthless activities and a Shravak is expected to avoid them completely. He should always remain cautious from such activities namely ill thoughts, slackness activities generating violence and the like. In case due to any ignorance he commits such fault he should purify his soul by meditating on the above lesson. नौवां व्रत : सामायिक नवमूं सामायिक व्रत सावज्ज जोगनूं वेरमणं जाव नियमं पज्जुवासामि, दुविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि, मणसा, वयसा, कायसा । एहवी सद्दहणा परूवणा, करिये तिवारे फरसनाये करी शुद्ध, एहवा नवमा सामायिक व्रतना पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं जहा - ते आलोउं - मणदुप्पणिहाणे, वयदुप्पणिहाणे, काय-दुप्पणिहाणे, सामाइयस्स सइ अकरणया, सामाइयस्स अणवट्टियस्स करणया, जो मे देवसि अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं । भावार्थ : सामायिक नामक नौवें व्रत में मैं समस्त सावद्य योगों से निवृत्त होता हूं । यावत् नियम (एक, दो, या तीन मुहूर्त्त अथवा जितने समय तक के लिए सामायिक की प्रतिज्ञा ली गई है) मैं सामायिक की आराधना करूंगा तब तक के लिए दो करण, तीन योग से, अर्थात् मन, वचन एवं काय से समस्त प्रकार के पापों का सेवन न मैं स्वयं करूंगा और न ही पाप में प्रवृत्ति के लिए किसी को प्रेरित करूंगा। इस प्रकार से सामायिक के प्रति मेरी श्रद्धा है एवं अन्य के सामने ऐसी ही मेरी प्ररूपणा भी है। इस विधि से सामायिक की आराधना की जाए तभी शुद्ध सामायिक होती है। सामायिक नामक इस नवम व्रत के पांच अतिचार हैं। उन अतिचारों को जानना तो आवश्यक है परन्तु उन्हें आचरण में लाना योग्य नहीं है। वे पांच अतिचार इस प्रकार हैं - (1) सामायिक के काल में यदि मैंने दुष्ट चिन्तन किया हो, (2) दुर्वचन बोले हों, (3) शरीर से दुश्चेष्टाएं की हों, (4) सामायिक के समय को विस्मृत किया हो, एवं (5) समय पूरा होने से पहले IVth Chp. : Pratikraman श्रावक आवश्यक सूत्र // 245 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358