Book Title: Agam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 323
________________ Pagesakslasses slesalelesslessleshaalesalesslesale clesslesslesalsalesisleshaalesesaksesalesalesalestendesdesirelessleslesalesdeskestessage vigilance in practice of the vows. Further the vow already accepted becomes more distinct. He makes a resolve that on that day, he shall go in that particular direction for only that particular period and not thereafter. Similarly in the seventh vow the limit for consumption and frequent consumption of articles of such use has been fixed by him voluntarily for one day and one night. By such special limitation of movement and consumption the shravak reduces further the inflow of karmic matter. It increases his vigilance towards the resolves and vows already undertaken become prominent. This Deshavakaskik Vrat is also called Samvar Vrat. ಕಳೆಣಿರ್ಶಣಿಗಳಣಿಕೆಶನೇಣಿಗಳಶಶಶಶಶಶಣಿರ್ಶ ಣಿಗಳಲ್ಲಿ ग्यारहवां व्रत : प्रतिपूर्ण पौषध - इग्यारं पडिपुण्ण पोषधव्रत असणं, पाणं, खाइम, साइमं चार आहारनूं पच्चक्खाण, अबंभ सेवननूं पच्चक्खाण, अमुक मणि-सुवण्ण-माला-वन्नग-विलेवणनूं पच्चक्खाण, सत्थ मूसलादिक सावज्ज जोगनूं पच्चक्खाण; जाव अहोरत्तं पज्जुवासामि, दुविहं तिविहेणं न करेमि, न कारवेमि; मणसा, वयसा, कायसा, एहवी सद्दहणा परूपणा, करीए ते वारे फरसनाए करी शुद्ध। एहवा इग्यारमा पडिपुण्ण पोषधव्रतना पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा, तं जहा ते आलोउं-अप्पडिलेहिय दुप्पडिलेहिय सेज्जासंथारए, अप्पमज्जिए दुप्पमज्जिए सेज्जासंथारए, अप्पडिलेहिय दुप्पडिलेहिय उच्चारपासवणभूमि, अप्पमज्जिए दुप्पमज्जिए उच्चार- पासवणभूमि, पोसहस्स सम्म अणणुपालणिया य जो मे देवसि अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। भावार्थ : 'प्रतिपूर्ण पौषध' नामक ग्यारहवें व्रत में आठ प्रहर (अहोरात्र पर्यंत) के लिए सभी प्रकार के अन्न, जल, मेवा-मिष्ठान्न एवं लौंग-सुपारी आदि चारों प्रकार के आहार का त्याग करता हूं। अब्रह्मचर्य-सेवन का त्याग करता हूं। अमुक प्रकार के मणि, सुवर्ण, पुष्पमाला, सुगंधित चूर्ण एवं विलेपन आदि द्रव्यों का त्याग करता हूं। इसी प्रकार शस्त्र-मूसल आदि को रखने एवं सावध योगों का त्याग करता हूं। एक दिन-रात अर्थात् आठ प्रहर के लिए दो करण, तीन योग से उपरोक्त सभी पदार्थों और सावध योगों का मन, वचन एवं काय से न स्वयं सेवन करूंगा और न ही सेवन करने के लिए दूसरों को प्रेरित करूंगा। इस प्रकार पौषध व्रत के प्रति मेरी श्रद्धा एवं प्ररूपणा है। पौषध के अवसर पर इसकी स्पर्शना करके आत्म-शुद्धि करूंगा। श्रावक आवश्यक सूत्र // 249 // IVth Chp.:Pratikraman Saaman a parParamparamparagrappearanspaperss

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