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किया हो, एवं सेवन करने वालों का समर्थन किया हो, तो मैं स्वयं को उससे पीछे लौटाता हूं। मेरा वह दुष्कृत मिथ्या हो ।
Self-criticism of Fault committed in Practice of Vow of Celibacy: I feel sorry for any fault committed by me in practicing the fourth major vow of the Jain monk. The lust can be in feeling, in attachment and in feeling towards an angel, a human being or an animal. In case I may have any disturbance in mind, body or speech which is of nine types, in respect of physical body, nine types in respct of fluid body and I may have cohabited with them in any of the eighteen ways. I may have encouraged other for such sexual acts or supported such acts of others relating to the day. I condemn myself for the same. May that sin be pardoned.
अपरिग्रह महाव्रत अतिचार आलोचना
पांचवें महाव्रत के विषय में जे कोई अतिचार लागा होय, ते मैं आलोउं छती वस्तु की ममता - मूर्छा कीधी होय, अछती वस्तु की वांछा कीधी होय, भण्डोवगरण, वस्त्र - पात्र, शरीर उपरि ममता- - मूर्छाभाव आण्यो होय, जो मे देवसि अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं |
भावार्थ : (वस्तुओं और शरीर के ममत्व का पूर्णत: परिहार करना अपरिग्रह महाव्रत है।) अपरिग्रह महाव्रत के विषय में यदि कोई दोष लगा है तो मैं उसकी आलोचना करता हूं। विद्यमान वस्तु पर यदि ममत्व किया हो, अविद्यमान वस्तु की इच्छा की हो, वस्त्र - पात्र आदि भण्डोपकरण तथा शरीर पर ममत्वभाव धारण किया हो तो उस दोष से मैं पीछे हटता हूं। मेरा वह दुष्कृत मिथ्या हो ।
Self-Criticism of Fault Relating to Vow of Non-Attachment: I curse myself for any fault committed by me in practice of fifth major vow of non-attachment for articles in my possession. I may have a lurking desire to procure those articles which are not in my possession. I may have attachment for the pots, clothes and my body. I curse myself for any feeling of attachment during the day. May I be absolved of that sin.
रात्रि - भोजन विरमण अतिचार आलोचना
छठा रात्रि भोजन के विषय में जे कोई अतिचार लागा होय, ते मैं आलोउं असणं, पाणं, खाइमं, साइमं सीत- मात्र रात- बासी रखा होय, रखाया होय, रखतां प्रति अनुमोद्या होय, जो मे देवसि अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
आवश्यक सूत्र
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Ist Chp. : Samayik