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भावार्थ : रात्रि-भोजन विरमण व्रत के विषय में यदि कोई अतिचार लगा है तो मैं उसकी आलोचना करता हूं। अशन, पान, खादिम और स्वादिम-ऐसे चतुर्विध आहार में से यदि कण मात्र भी रात्रि में रखा हो, किसी से रखवाया हो अथवा रखने वाले का समर्थन किया हो तो मेरा वह दोष निष्फल हो। उस दोष से मैं पीछे हटता हूं।
Self Criticism of Fault Relating to Vow of Not taking Meals at Night: The sixth vos of Jain monk is about taking meals at night. In case I may have committed any fault in practice of this vow by taking any food, liquid, sweets or fragrant thing, cold food at night or kept any stale food or got the same stored or appreciated those who commit such fault, I curse myself for the same. May I be absolved of that sin.
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सामूहिक अतिचार आलोचना पांच महाव्रत की पच्चीस भावना सम आराधी न होय, सम पाली न होय, सम फरसी न होय, जो मे देवसि अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।
भावार्थ : ऊपर कहे गए पांचों महाव्रतों की पच्चीस भावनाओं का यदि सम्यक् प्रकार से आराधन, परिपालन एवं स्पर्शन न किया हो तो उससे उत्पन्न दोष की मैं आलोचना करता हूं। मेरा वह दोष निष्फल हो।
Combined Self-Criticism of Faults: There are twenty five reflections in respect of practice of five major vows. I may not have properly reflected on them, may not have properly practiced them during the day. I curse myself for the same. May I be absolved of that sin.
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तैंतीस आशातना आलोचना तैंतीस आसातना माहिली जे कोई अनेरी आसातना करी होय, कराई होय, करतां प्रति अनुमोदी होय, जो मे देवसि अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।
भावार्थ : (देव, गुरु, धर्म के प्रति अनुचित व्यवहार आशातना कहलाती है। वह तैंतीस प्रकार की है।) तैंतीस आशातनाओं में से यदि कोई आशातना मैंने स्वयं की हो, दूसरों से कराई हो, करने वालों का समर्थन किया हो तो उससे उत्पन्न अतिचार की मैं आलोचना करता हूं। मेरा वह दुष्कृत मिथ्या हो।
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प्रथम अध्ययन : सामायिक
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Avashyak Sutra p ar ama