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appreciated those who committed any such sin during the day. I curse myself for the same and withdraw myself from it. May my fault be condoned.
मूलगुण- उत्तरगुण विषयक सामूहिक आलोचना
मूलगुण पंचमहाव्रत, उत्तरगुण दशविधि पच्चक्खाण, इण विषय में जे कोई अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार जाणते अजाणते मन-वचन-काया कर सेव्या होय, सेवाया होय, सेवतां प्रति अनुमोद्या होय जो मे देवसि अइयारो कओ तस्स मिच्छा मिदुक्कडं ।
भावार्थ : (पांच महाव्रतों को मूलगुण एवं दस प्रकार के प्रत्याख्यान को उत्तरगुण कहा जाता है।) इन पांच मूल एवं पांच उत्तर गुणों के विषय में यदि किसी प्रकार के अंतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार एवं अनाचार का जानते हुए या अजानते हुए, मन, वचन एवं काय से सेवन किया हो, कराया हो, या करते हुए का समर्थन किया हो तो उक्त दोषों से मैं पीछे लौटता हूं। मेरा वह दुष्कृत मिथ्या हो ।
अतिक्रम आदि पदों का अर्थ इस प्रकार है
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(1) अतिक्रम - व्रत-भंग करने का विचार उत्पन्न होना ।
(2) व्यतिक्रम - व्रतभंग करने के लिए तैयार होना ।
(3) अतिचार - व्रत भंग करने के लिए साधन जुटाना, आंशिक रूप से व्रतों को भंग कर देना।
( 4 ) अनाचार - ग्रहण किए हुए व्रतों को पूर्ण रूपेण भंग कर देना ।
सच्चे हृदय से किए गए प्रतिक्रमण से अतिचार पर्यंत दोषों की शुद्धि संभव है। अनाचार शुद्धि के लिए प्रायश्चित्त का विधान है।
Combined Self-Criticism Relating to Faults in Practice of Primary Vows and Secondary Rules: The primary duties are practice of five major vows. The secondary duties are withdrawing oneself from (worldly) physical requirement in ten different ways. In case I may have committed any faults in practice of these vows and rules knowingly or unknowingly (inadvertently) mentally, orally or physically by intending to commit a fault, preparing for it or partially breaking a vow, or encouraging anyone to break the vow or appreciated those who commit such fault. I curse myself for the same. May my fault be condoned.
प्रथम अध्ययन : सामायिक
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Avashyak Sutra