Book Title: Agam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 277
________________ आवश्यक सूत्र : श्रावक प्रतिक्रमण Avashyak Sutra: Shravak Pratikraman प्रथम आवश्यक (First Aavashyak ) विधि : सर्वप्रथम गुरु महाराज को तिक्खुत्तो के पाठ से सविधि वन्दन करके चतुर्शितिस्तव की आज्ञा लेकर सम्यक्त्व की शुद्धि के लिए आगे कहे गए सूत्र का चिन्तन करें Procedure: The practitioner should first of all bow to the spiritual master as laid down in the code. He should then seek permission to recite hymn in praise of 24 Tirthankar. Thereafter, for the purification of his vision and faith, he should recite the following verse: सम्यक्त्व सूत्र अरिहंतो महदेवो जावज्जीवं सुसाहुणो गुरुणो । जिणपण्णत्तं तत्तं इअ सम्मत्तं मए गहियं । पंचिंदियसंवरणो तह नवविहबंभचेरगुत्तिधरो । चडविहकसायमुक्को इअ अट्ठारस्सगुणेहिं संजुत्तो । पंचमहव्वयजुत्तो पंच - विहायार - पालण समत्थो । पंचसमिओ त्तिगुत्तो छत्तीस गुणो गुरु मज्झ ॥ भावार्थ : जीवनभर के लिए अरिहंत भगवान् मेरे देव हैं। शुद्ध संयम का पालन करने वाले साधु मेरे गुरु हैं। जिनेश्वर भगवान् द्वारा प्ररूपित अहिंसा आदि तत्व ही मेरा धर्म है। देव, गुरु एवं धर्म पर अवचिल श्रद्धा स्वरूप यह सम्यक्त्व मैंने ग्रहण किया है। पांच इन्द्रियों को वश में करने वाले, नौ प्रकार की ब्रह्मचर्य की गुप्तियों को धारण करने वाले, चार प्रकार के कषायों से मुक्त, इन अठारह गुणों से युक्त, तथा पांच महाव्रतों से युक्त, पंचविध आचार को पालन करने में समर्थ एवं पांच समितियों व तीन गुप्तियों की आराधना करने वाले, उक्त छत्तीस गुणों को धारण करने वाले सच्चे साधु ही मेरे गुरु हैं। श्रावक आवश्यक सूत्र // 203 // Ist Chp. : Samayik

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