Book Title: Agam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 265
________________ ಕ ಳಶಗಳೇಶಗಳಲ್ಲಿ Rakeskskskskesikskskskskskskskelesdkesakskskskskskedlekaskesakesolesale skeske sakesheskosele skeske alsokesle skesalesaleriage उदाहरण के लिए-यदि पौरुषी का पारणा करना हो तो कहना चाहिए-'पोरुसीपच्चक्खाणं कयं'। स्पर्शित, पालित आदि प्रत्याख्यान के छह अंगों के अभिधेयार्थ इस प्रकार हैं (1) स्पर्शित-प्रवचनसारोद्धारवृत्ति के अनुसार स्पर्शित से तात्पर्य है गुरुमुख से अथवा स्वयं ही सविधि प्रत्याख्यान अंगीकार करना। आचार्य हरिभद्र के अनुसार-स्वीकार किए हुए प्रत्याख्यान को बीच में खण्डित न करते हुए शुद्ध भावना से पालन करना। (2) पालित-प्रत्याख्यान को पुनः पुनः उपयोग में लाकर सावधानी पूर्वक उसकी रक्षा करना। (3) शोधित-प्रत्याख्यान में कोई दोष लग जाए तो तत्क्षण उसकी शुद्धि कर लेना। सोहियं का संस्कृत रूप शोभित भी होता है। उसके अनुसार गुरुओं, साधार्मिकों, अथवा अतिथियों को भोजन प्रदान करके स्वयं भोजन करना।। (4) तीरित-ग्रहण किए हुए प्रत्याख्यान को तीर-पूर्णता तक पहुंचाना, अथवा प्रत्याख्यान का समय पूरा हो जाने पर भी संतोष पूर्वक कुछ समय ठहरकर भोजन करना। ___(5) कीर्तित-प्रत्याख्यान की पूर्ति पर भोजन प्रारंभ करने से पूर्व प्रत्याख्यान को विचार कर प्रमोदपूर्ण भाव से अथवा उत्कीर्तनपूर्वक कहना कि मैंने अमुक प्रत्याख्यान अमुक रूप से अंगीकार किया था, वह विधि सहित सम्पन्न हो गया है। इस प्रकार प्रत्याख्यान को स्मरण कर प्रसन्न होना। . (6) आराधित-समस्त दोषों से दूर रहते हुए विधि सहित प्रत्याख्यान की आराधना करना। सूत्र में आए हुए अणुपालियं-अनुपालित का अर्थ है तीर्थंकर भगवन्तों की आज्ञा का पुनः पुनः स्मरण करते हुए प्रत्याख्यान का पालन करना। 'Explnation: This aphorism is recited at the conclusion of every pratyakhyan. It should be kept in mind that instead of 'Namukkar Sahiyam' the name of the pratyakhyan concerned should be uttered—for instance at the conclusion of paurushi pratyakhyan, the word paurushi pratyakhyan should be uttered. Six words, sparshit, paalit and the like mentioned in the aphorism can be interpreted as follows: 1. Sparshit: According to 'pravachan sarodhar vrithi' the word sparshit denotes that the pratyakhan should either be accepted from the guru or by practitioner himself in proper manner. ಶನೇಶಣೆಯ ಬಳ आवश्यक सूत्र ramma // 191 // 6th Chp.:Pratyakhyan rpasasarapparaagapppppppprasasaramparasagar

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