Book Title: Agam 28 Mool 01 Aavashyak Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 262
________________ ಕ ರ್ಣಿಣಿಣಗಳ ತಣಿಸಬಹಳಷ್ಟ peakskskseelkesaksketcsakslaskeskskeakisakskeslesaleelkesalisakeseksisekasketskeeke skeleseseakskskskskskssleshasisirsadnegree अभिग्रह सूत्र गंट्ठिसहियं अभिग्गहं (अहवा मुट्ठिसहियं अभिग्गह) पच्चक्खामि, चउव्विहंपि आहारं-असणं, पाणं, खाइमं, साइम। अन्नत्थऽणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि। भावार्थ : ग्रंथि-सहित (अथवा मुष्टि-सहित) अभिग्रह व्रत ग्रहण करता हूं। फलतः अशन, पान, खादिम एवं स्वादिम रूपी चारों आहारों का त्याग करता हूं। अनाभोग, सहसाकार, महत्तराकार, एवं सर्वसमाधिप्रत्ययाकार-इन चार आगारों के सिवाय अभिग्रह की संपन्नता तक चारों प्रकार के आहार का त्याग करता हूं। Explanation: I make a resolve with abhigreh such as knot or fist. Sir, I discard all the four types of articles of consumption namely food, liquids, dry fruit and fragrance for taste. The laxity in it is only in respect of Anabhog, Sahasakar, Mahattarakar, Sarva Samadhi pratyayakar. With three conceptions I resolve not to take anything till the conclusion of my abhigreh. विवेचन : अभिग्रह जैन पारिभाषिक शब्द है जिसका अर्थ है-संकल्प या प्रतिज्ञा करना। कर्मों की विशिष्ट निर्जरा के लिए अभिग्रह व्रत धारण किया जाता है। तपस्या की समाप्ति पर, अथवा बिना तपस्या के भी साधक अपने मन में संकल्प धारण कर लेता है कि अमुक-अमुक बातों/बोलों/स्थितियों का संयोग होने पर ही मैं आहार-पानी ग्रहण करूंगा, अन्यथा अमुक अवधि तक निराहार रहूंगा। प्रस्तुत सूत्र में संकेत मात्र के लिए गंठी, मुट्ठी शब्दों का व्यवहार हुआ है। गंट्ठिसहियं * का अर्थ है-ग्रंथिसहित। साधक किसी वस्त्र या डोरे में गांठ बांध कर संकल्प करता है कि जब तक यह गांठ नहीं खोलूंगा तब तक के लिए आहार-पानी ग्रहण नहीं करूंगा। ___मुट्ठिसहियं-मुष्टि-सहित। साधक अपनी मुट्ठी बन्द करके संकल्प लेता है कि जब तक मुट्ठी नहीं खोलूंगा तब तक अन्न-जल ग्रहण नहीं करूंगा। ____ अभिग्रहों की संख्या निश्चित नहीं है। साधक के अपने चित्त पर अभिग्रह का प्रारूप निर्भर है। इसमें संदेह नहीं है कि अभिग्रह एक कठिन साधना है। धीर-वीर साधक ही इसे अंगीकार करते हैं। परन्तु यह भी आवश्यक है कि अपने धैर्य और पराक्रम के अनुरूप ही साधक को अभिग्रह अंगीकार करना चाहिए। Exposition: Abhigreh is a particular word in Jain philosophy. It means resolve, or determination. For special shedding of Kamas, abhigreh is undertaken. The ಜಿ.ಶ.ಕ.ಭಳಕಳಕಳಳಬೇ षष्ठ अध्ययन : प्रत्याख्यान // 188 // Avashyak Sutra

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