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Self Criticism of Faults Concerning Stoppage of Speech: I feel sorry for any fault that I may have committed relating to avoiding of speech. I might have talked about women ( Istri katha), about food (bhatt katha), about country or about state administration. I may have done such talk myself, inspired others for such talks or supported others who make such talks. May my such faults committed during the day be absolved. I feel sorry for them. I feel sorry for any utterance made without sense of proper discrimination.
काय - गुप्ति अतिचार आलोचना
काय गुप्ति के विषय में जे कोई अतिचार लागा होय ते मैं आलोउं, काया - उठते-बैठते, हिलते-चलते, संकोचते - पसारते भूत-प्राणी जीवों की विराधना करी होय, कराई होय, करतां प्रति अनुमोदी होय, जो मे देवसि अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं |
भावार्थ : काय - गुप्ति के संबंध में यदि कोई दोष लगा है, तो मैं उसकी निन्दा करता हूं । उठते हुए, बैठते हुए, हिलते हुए, चलते हुए, देह को संकोचते हुए, फैलाते हुए यदि सूक्ष्म या स्थूल जीवों की विराधना (हिंसा) मैंने स्वयं की हो, दूसरों से विराधना कराई हो एवं विराधना करने वालों का समर्थन किया हो, तो उक्त अतिचारों से मैं पीछे हटता हूं। मेरे वे दोष निष्फल हों।
Self Criticism of Faults Relating to Bodily Stoppage: I feel sorry for any fault in practicing the vows of stoppage (gupti) of physical activity (kaya) while standing sitting, moving or walking, stretching or pressing my body I may have caused any harm or disturbance to any living being. I might have got done or appreciated the harm being caused by others during the day. May that sin be pardoned.
छह काय संबंधी अतिचार आलोचना
पृथ्वीकायिक विषयक अतिचार आलोचना
पृथ्वीकाय के विषय में जे कोई अतिचार लागा होय ते मैं आलोडं, पृथ्वीकाय - माटी, मरुढ, गेरु, पांडु, हिंगलु, हरताल, लून, खड़िया, जंगाल, सचित्त रज प्रमुख की विराधना करी होय, कराई होय, करतां प्रति अनुमोदी होय, जो मे देवसि अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
आवश्यक सूत्र
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Ist Chp. : Samayik