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SELF CRITICISM OF FAULTS OF DISPOSAL
I feel sorry for any fault that I may have committed in respect of disposal of excreta (Uchchar), urine (prasravan), sputum (khel) dirt generated by perspiration (Jall), dirt of the body (mal) nose dirt (Singhaan). In case I have disposed of got disposed or appreciated such disposal of excreta and the like without properly examining the spot and cleaning it with the broom, or after such like disposal not uttered that I snap my attachment with it (bosare). While moving out for this purpose I may have not uttered (aavasehi) that I go out for such an essential purpose and on return not uttered (Nissehi) that I have come back to the place of my master. I feel sorry for such deviation committed during the day. May my faults be remitted.
Central Theme: The procedure for disposal of excreta, urine, sputum, body dirt, broken pot that can no longer be used at a place free from violence to any living being is called Parithavana Samiti:
गुप्ति विषयक अतिचार मन गुप्ति अतिचार आलोचना
मन गुप्ति के विषय में जे कोई अतिचार लागा होय ते मैं आलोडं, मन अट्ट - दुहट्ट, संकल्प-विकल्प, राग-द्वेष की चिंत्वणा करी होय, कराई होय, करतां प्रति अनुमोदी होय, मन का योग खोटा परवरताया होय, जो मे देवसि अइयारो कओ तस्स मिच्छा मिदुक्कडं ।
भावार्थ : (गुप्ति का अर्थ है - गोपन करना । पापमयी चिन्तन से मन को रोकना मन गुप्ति
है।)
प्रस्तुत पाठ में साधक मानसिक व्यापारों / विचारों का अवलोकन करता है। वह पड़ताल करता है कि मेरा मन कहीं राग-द्वेष, दुर्ध्यान आदि में तो नहीं उलझा । यदि ऐसा हुआ है तो वह इस पाठ द्वारा उक्त दोषों का परिहार करता है ।)
मन गुप्ति के संबंध में यदि कोई दोष लगा है तो मैं उसकी निन्दा करता हूं। यदि मेरा मन आर्त्त-रौद्र ध्यान में प्रविष्ट हुआ हो, संकल्प-विकल्प में भटका हो, राग और द्वेष से दूषित हुआ हो, राग-द्वेष का चिन्तन स्वयं किया हो, दूसरों से कराया हो, दुश्चिन्तन करते हुओं को अच्छा जाना हो, बुराइयों में मन उलझा हो, तो उक्त पापों से मैं पीछे हटता हूं। मेरा वह दुश्चिन्तन मिथ्या हो ।
आवश्यक सूत्र
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Ist Chp. : Samayik