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संघाइया, संघट्टिया, परियाविया, किलामिया, उद्दविया ठाणाओ ठाणं संकामिया, जीवियाओ ववरोविया। जो मे देवसि अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं। ___ भावार्थ : (गमनागमन संबंधी दोषों की निवृत्ति हेतु प्रतिक्रमण करने के लिए साधक गुरु
से निवेदन करता है-) ___हे भगवन्! आप आज्ञा प्रदान करें, मैं ईर्यापथिकी (गमन-आगमन से लगने वाली) क्रिया (हिंसा) का प्रतिक्रमण करना चाहता हूं। गुरुदेव की आज्ञा प्राप्त होने पर साधक कहता है-आप की आज्ञा प्रमाण है, मार्ग में चलते हुए असावधानी के कारण किसी भी जीव की हिंसा हुई हो तो मैं उस पाप से निवृत्त होना चाहता हूं। मार्ग में आते-जाते हुए किसी प्राणी को पैरों के
नीचे दबाया हो, सचित्त बीज या हरित वनस्पति को कुचला हो, ओस, कीड़ियों के बिल, पांच - प्रकार की काई, सचित्त जल, सचित्त मिट्टी और मकड़ी के जालों को कुचला हो, एकेन्द्रिय,
द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा पंचेन्द्रिय तक के किसी भी जीव की विराधना की हो, सामने से आते हुओं को रोका हो, धूल आदि से ढंका हो, भूमि पर मसला हो, परस्पर इकट्ठे करके क्लेशित किया हो, किसी भी ढंग से परितापित, क्लेशित और भयभीत किया हो, एक स्थान से उठाकर दूसरे स्थान पर रखा हो, अथवा जीवन से ही रहित किया हो तो मेरा वह सब पाप निष्फल हो।
Cenral idea : In order to shed the faults arising from movement through pratikraman (self criticism), the practitioner requests the master .
Reverend Master! Kindly grant me the permission. I want to absolve my soul of the faults resulting due to violence caused if any by my movement (Iriyapathika kirya). After obtaining such permission of the master, the practitioner says, “I happily accept your permission. Due to any negligence in case any violence has been caused to living being while moving about, I want to shed that sin. While moving about, I might have crushed any living being under my feet. I might have trampled any seed worthy of germination or any green vegetation and might have destroyed drops of dew, the moles of ants, five types of moss, Sachit (living) water, organic earth, the web of the spider. I might have adversely affected any one-sensed, two-sensed, three-sensed, four-sensed and five-sensed living beings. I might have stopped beings coming in front of me I might have covered them with earth or crushed them on the ground. I might have caused hurt to then by collecting them at one place. I might have caused pain to them, disturbed them or frightened them in any manner. I might
Sarapparegaragrapapgargargappa
आवश्यक सूत्र
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Ist Chp. : Samayik