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3. Tadubhayagum: It is that which contains both—Sutra and their meaning.
Out of the 14 digressions relating to scriptural studies, the distinct interpretation of the last four is as under:
Akaalay Kao Sajjhao: The studies done at the time not prescribed for that study. The agam for which the time is specifically laid down for their study are called Kalik Sutras. In case that time is not kept in mind and these agams are studied at any different time, it is called study at improper time. So, that study is faulty.
Kalay na Kao Sajjhao: The time has been prescribed in Agams for their study. If it is not studied at that time, it is called Kalay na kao sajjhao.
Asajjhaijay sajjhayum: In scripture, there is mention of 32 periods when Agam should not be studied. If any such study is done at that time it is not free from fault.
Sajjhayayna sajjhaiyum: If at a time—which is proper for study of Agams they are not studied due to any lethargy, it is called a fault.
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दर्शन-अतिचार आलोचना दर्शन सम्यक्त्व-रत्न पदार्थ के विषय में जे कोई अतिचार लागा होय ते मैं आलोउं, 1. श्री जिन वचन सम साचा श्रद्धा न होय, प्रतीत्या न होय, रुच्या न होय। 2. परदर्शन की आकांक्षा वांछा कीधी होय। 3. फल प्रति संदेह आण्या होय। 4. परपाषंडी की प्रशंसा कीधी होय। 5. परपाषंडी से आलाप-संलाप सहसा परचा करा. होय, कराया हो, करतां प्रति अनुमोद्या होय। जो मे देवसि अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं। ____ भावार्थ : मेरे द्वारा ग्रहण किए गए सम्यक् दर्शन (यथार्थ श्रद्धा) रूपी रत्न के विषय में यदि कोई दोष लगा हो, तो मैं उसकी आलोचना करता हूं। (आगे कहे जाने वाले पांच प्रकार के अतिचारों से सम्यक्त्व रूपी रत्न दूषित होता है-) (1) यदि मैंने जिनेश्वर देव के वचनों में श्रद्धा न की हो, विश्वास न किया हो, रुचि न ली हो, (2) जैन दर्शन के अतिरिक्त अन्य दर्शनों को अपनाने की इच्छा-आकांक्षा की हो, (3) धर्म के फल में संदेह किया हो, (4) अन्य-मति की प्रशंसा की हो, (5) अन्य मति से वाद-संवाद या परिचय किया हो, उनमें विश्वास किया हो, दूसरों को वैसा करने के लिए प्रेरित किया हो, एवं वैसा करने वालों की अनुमोदना-प्रशंसा की हो, तो उक्त क्रियाओं से उत्पन्न मेरा दोष निष्फल हो।
प्रथम अध्ययन : सामायिक PREPRENER
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Avashyak Sutra
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