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Elaboration: Faith is an inner trait of the soul. It is termed as a jewel. The real practitioner has staunch faith in the word of the omniscent. He cannot be impressed or lured by the material or transient attractions in other faiths. With the present aphorism relating to repentance for digressions in right faith (or vision), the practitioner looks deeply at his self. He studies whether his perception has not been adversely affected by any slackness or lack of proper attention. In case he finds any such deviation, he immediately removes it.
चारित्र- अतिचार आलोचना सूत्र
ईर्या समिति अतिचार आलोचना
चारित्र पंच महाव्रत के विषय में जे कोई अतिचार लागा होय, ते मैं आलोडंईर्ष्या - द्रव्य थकी नीची दृष्टि देख के न चाल्यो होय, खेत्र थकी झूसरे प्रमाण, काल थकी जाव रीयंते, भाव थकी बिन उपयोग प्रवरत्यो होय, जो मे देवसि अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं ।
भावार्थ : चारित्र रूपी पांच महाव्रतों के विषय में यदि कोई दोष उत्पन्न हुआ हो, तो मैं उसकी आलोचना करता हूं। ( सर्वप्रथम चारित्र के प्रथम चरण गमन संबंधी अतिचारों की आलोचना करते हुए साधक मनन करता है - ) द्रव्य की अपेक्षा से यदि मैंने नीची (गन्तव्य मार्ग पर) दृष्टि रखते हुए गमन न किया हो, क्षेत्र की अपेक्षा से शरीर प्रमाण (साढ़े तीन हाथ प्रमाण) भूमि को बिना देखते हुए गमन किया हो, काल की अपेक्षा से जब तक गमन किया हो - अर्थात् दिन में देखे बिना एवं रात्रि में रजोहरण से पूंजे बिना गमन किया हो, एवं भाव की अपेक्षा से उपयोग (विवेक) रहित गमन किया हो, तो उक्त दिन संबंधी ईर्ष्या के अतिचारों से मैं निवृत्त होता हूं। उससे उत्पन्न पाप निष्फल हो।
(Aphorism relating to repentance for deviation in practice of right conduet)
I feel sorry if I have committed any fault in practice of five great vows-In case I might not have moved keeping my looks downward; I might not have properly looked at the ground ahead upto my length, in case I might not have taken notice of the instruction regarding time of the movement, in case I might not have a proper sense of discrimination while moving all my faults concerning the day may vanish— I feel sorry for them.
प्रथम अध्ययन : सामायिक
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Avashyak Sutra